6 जनवरी विलीनीकरण विशेष: ऐसे सहेजा गया इतिहास
जानें भोपाल राज्य के विलीनीकरण आंदोलन में बरेली— बौरास की निर्णायक भूमिका के इतिहास को सहेजने की कहानी
—याज्ञवल्क्य
बात 1990 के आसपास की है। भारत का स्वाधीनता संग्राम पढ़ते— पढ़ते उसमें रायसेन जिले की भूमिका तलाशने की जिज्ञासा जाग्रत हुई। यह जानकर घोर आश्चर्य हुआ कि अंग्रेजों द्वारा शासित भारत तो 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हो गया था, लेकिन हमारा रायसेन जिला भोपाल नबाबी का हिस्सा था और हमारा स्वाधीनता संग्राम तो 1949 तक चलता रहा है।
इतिहास को समझने और सहेजने की इच्छा को रायसेन में तब जिला जनसंपर्क अधिकारी के रूप में पदस्थ बहुमुखी प्रतिभा के धनी अशोक मनवानी और रायसेन जिले के पहले पूर्णकाालिक पत्रकार पत्रकार खिलावन चंद्राकर का साथ मिल गया। इसके बाद हम तीनों अपने— अपने स्तर से स्वाधीनता संग्राम में रायसेन जिले की भूमिका तलाशने में जुट गए। इस क्रम में बरेली और बौरास के पचासों बुजुर्गों से हम लोगों से उस समय 6 जनवरी विलीनीकरण विशेष: इतिहास को सहेजने का इतिहासकी स्थितियों को समझने का प्रयास किया।
इस क्रम में बरेली में हायर सेंकंडरी स्कूल में पदस्थ मेरे गुरु— कवि निर्मल कुमार जैन से बहुत कुछ जानने को मिला। वे इस आंदोलन में सक्रिय रहे थे। बरेली के ही शिक्षक—कवि—संगीतकार और मेरे पिताजी के मित्र पंडित अवधनारायण रावत से बहुत कुछ जानकारी मिली। स्व भगवानदास जी राठी इस आंदोलन के प्रमुख नेताओं में शामिल थे। उनके पौत्र कमल—शरद राठी ने हमें उस समय के अखबार और अन्य मुद्रित सामग्री उपलब्ध कराकर प्रामाणिक रूप से कुछ कह पाने की स्थिति में ला दिया।
इसके बाद मनवानी जी और चंद्राकर जी के साथ ही मैं भी इस संबंध में पत्र—पत्रिकाओं में लिखने लगा। देश की तब की सबसे बड़ी फीचर एजेंसी ने 26 जनवरी की विशेष श्रृंखला में मेरा लेख ‘जनवरी की दो विस्मृत शौर्य गाथाएं’ प्रसारित किया तो यह देशभर के प्रमुख पत्र—पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ और विलीनीकरण आंदोलन चर्चाओं में आ गया।
1992 के अंत में विलीनीकरण को लेकर पुस्तक तैयार हो चुकी थी। सामग्री बहुत अधिक थी और छपाई में अधिक खर्च आ रहा था। प्रसंगवश कहना चाहूंगा कि पुस्तक लिखना मेरे लिए कभी कोई कठिन काम नहीं रहा, लेकिन प्रकाशन हमेशा दुष्कर रहा है। अभी भी दर्जनों पांडुलिपियां प्रकाशन की प्रतीक्षा में हैं। खैर! पुस्तक का संक्षिप्तीकरण किया गया। मित्र संतोष रिछारिया, विजयप्रकाश तिवारी, राजकिशोर द्विवेदी और अनिल वर्मा साथ में थे। ठीक 6 जनवरी 1993 को ‘विलीनीकरण के अमर शहीदों को श्रद्धांजलि’ प्रकाशित हुई। हम सभी प्रेस से पुस्तक लेकर सीधे राजभवन पहुंचे। उस समय मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू था। महामहिम राज्यपाल के हाथों इसका लोकार्पण हुआ।
संभव है, विलीनीकरण आंदोलन के इतिहास की तरह इस पर केंद्रित यह पहली प्रामाणिक पुस्तक को भी पाठक भूल चुके हों। कृपया इसे इस लिंक पर जाकर पढ़ना और सहेजना न भूलें—vilinikaran_subhchoupal