धीरे-धीरे…
बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे,
खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे।
किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला,
कटा ज़िंदगी का सफ़र धीरे-धीरे।
जहाँ आप पहुँचे छलांगे लगाकर,
वहाँ मैं भी आया मगर धीरे-धीरे।
पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी,
उठाता गया…
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