कुछ आपबीती-कुछ जगबीती(14)

साप्ताहिक स्तंभ- याज्ञवल्क्य

श्रीकृष्ण की ससुराल से स्वागतम् 2024

बीते कुछ दिनों से कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझता रहा हूं। यह चिंताजनक तो बिलकुल भी नहीं हैं, लेकिन कहीं न कहीं 2023 के अंतिम पखवारे में काम तो प्रभावित हुआ ही है। सन् 2024 को सूरज की प्रतीक्षा वहां की, जहां भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल है। यह भी बता दें कि श्रीकृष्ण की यह ससुराल 27 दिनों तक त्रेता और द्वापर युग के योद्धा जामवंत जी से युद्ध के बाद बनी।

मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी चौथ का चंद्रमा देख लिया था। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार संक्षिप्त कथा यह है कि श्रीकृष्ण को स्वयमंतक मणि को लेकर झूठा कलंक लगा। कृष्ण ने स्यमंतक मणि के लिए जामवंत से मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में विंध्याचल में नर्मदा के अंचल में जामवंत की स्थली जामगढ़ में युद्ध किया। श्रीकृष्ण को स्यमंतक मणि मिली, जिससे वे निष्कलंक हुए। इसके साथ ही जामवंत की पुत्री जामवंती भी पत्नी के रूप में मिलीं। पौराणिक आख्यानों के प्रकाश में जामगढ़ को भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल माना जाता है। शक्ति और शिव की इस क्रीडास्थली और जामवंत तथा कृष्ण के युद्ध—संधि स्थल पर मैने आप सभी के लिए 2024 में मनचाही कामनाओं की पूर्ति के लिए मनोयोग से प्रार्थनाएं कीं। मानव के रूप में हम मनोकामनाओं से मुक्त होने का दावा नहीं कर सकते। परमसत्ता हम सभी को अपने सपनों को साकार करने के लिए उपयुक्त रास्ते पर अनथक चलने की सामर्थ्य प्रदान करे, यह कामना है।

सनातन में सबकुछ समाहित
हम सनातन संस्कृति को मानते हैं। हमारी संस्कृति अत्यंत उदार है और हम सभी विचारधाराओं को अपने में समाहित कर लेते हैं। साल में कई बार नया साल मनाने में हमारी संस्कृति बाधा नहीं बनती। हम अपने से भिन्न विचारों, परंपराओं और मान्यताओं का भी पूरा सम्मान करते हैं। मेरे लिए किसी पर्व को मनाने में धर्म बाधा नहीं लगता। हमारी अपनी धार्मिक मान्यताएं कुछ भी हों, लेकिन हम प्रत्येक मान्यता का कम से कम तब तक अवश्य सम्मान करते हैं, जब तक हमारे अपमान का किसी का उद्देश्य न हो।

कुछ निजी लक्ष्यों के बारे में
साल का बदलना भी एक ऐसा अवसर होता है कि हम अपने अधूरे कामों की समीक्षा करें और नए वर्ष के लिए समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित करें। सालों बीत गए, जबसे ‘मैं’, ‘हम’ में बदल चुका है। जीवन को पूरी पारदर्शिता सहित सभी के प्रति समभाव के साथ जीने का प्रयास चलता रहा है। 2024 के लिए निजी लक्ष्य आप सभी को सुझावों के साथ ही भटकने पर रोकने—टोकने का अधिकार देते हुए घोषित कर रहे हैं।
1.‘शुभ चौपाल’ www.subhchoupal.com का अभी साप्ताहिक प्रकाशन और निकट भविष्य में इसे दैनिक तक पहुंचाना। इसमें एक—दो सप्ताह देर—अबेर और स्वरूप में कमियां व्यवस्थागत सुधारों के लिए संभावित है, लेकिन प्रकाशन में कोई चूक नहीं होगी।
2.पत्रकारिता के प्रति समर्पित लोगों का चयन और प्रतिदिन लक्ष्य आधारित काम करना। कोई भी दिन ऐसा न रहे, जिस दिन कुछ न किया हो। जो अपने साथ काम करेंगे, उनका परिवार के मुखिया की तरह ध्यान रखना।
3.सामाजिक सरोकारों के लिए समर्पित पत्रकारिता बिना किसी राग—द्वेष के मान—अपमान और समर्थन—विरोध की परवाह किए करना।
4.कई कारणों से लिखने—पढ़ने में कमी आई है। अपने समय का पूरी तरह सदुपयोग करना और अधूरी पुस्तकों के लेखन पर ध्यान देना।
5.संसाधनों और तकनीकी ज्ञान में वृद्धि के लिए निरंतर सचेत रहना।

कुछ आप बदलें, कुछ हम भी
यह बात केवल स्थानीय—क्षेत्रीय मित्रों के लिए ही है। आप में से बहुत लोगों को पता है पढ़ाई के बाद पत्रकारिता और लेखन के लिए स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर रखा है और जीवन में इसके अलावा कुछ किया भी नहीं है। कई समूहों में काम करने के बाद मुझे लगा कि अपने क्षेत्र, अपने लोगों के लिए उतना नहीं कर पा रहा हूं, जितना किया जाना चाहिए। समाचारपत्र और वेबसाइट इसी सोच के साथ रही। अभी तक होता यह रहा है कि दोनो लगातार घाटा देने के साथ कर्ज बढ़ाते रहे हैं। पत्रकारिता के नाम पर जो कुछ हो रहा है, उससे भलीभांति परिचित हूं। लेकिन सवाल यह है कि क्या धमकाने—चमकान और चाटुकारिता से ही पत्रकारिता को जिंदा रखा जा सकता है? अपने लोगों, जिसमें सभी समाहित हैं, केवल उनसे पैसा लेने के लिए उन्हे कथित आइना दिखाएं अथवा धनकुबेरों के प्रवक्ता बन जाएं? विज्ञापन के नाम पर यही सब होता है। इसलिए जो कभी नहीं किया, वह तो नहीं कर सकते, लेकिन सामान्यत: विज्ञापनों से परहेज अवश्य कर रहे हैं।

अब, जबकि हमारा निर्णायक विस्तार कार्यक्रम चल रहा है, कुछ आप हमारे प्रति अपना नजरिया बदलें और कुछ हम भी बदल रहे हैं। ध्यान दें कि आपका हमारे विस्तार कार्यक्रम में सहयोग आपकी बात और अधिक प्रभावी ढंग से कहने की ताकत बढ़ाएगा। हम न चंदा चाहते और न विज्ञापन चाहते, लेकिन आप हमारे सदस्य स्वयं बनें तथा दूसरों को प्रेरित करें, इतना तो चाहते ही हैं। साल 2024 में चलो हम एकबार फिर परस्पर नैतिक सहयोग की नीति पर चलकर देखें।