कुछ आपबीती-कुछ जगबीती(21)
होम करते हाथ जलाने का आनंद— याज्ञवल्क्य
होम करते हाथ जलने की कहावत हम सबने सुनी है। यदि आपको भी इस दौर में होम करने यानि किसी के लिए अच्छा करने की बीमारी है तो तय है, आप भी हाथ जलने के अनुभव से अवश्य गुजरे होंगे। हालांकि हर बार ऐसा ही हो, यह जरूरी तो नहीं है, लेकिन आमतौर पर ऐसा ही होता है।
पत्रकारिता करता रहा हूं। यह भी बताना चाहूंगा कि वर्तमान के मीडिया मेन से हटकर पुराने जमाने के पत्रकारों जैसा स्वभाव बना हुआ है। पत्रकारिता के कारण प्रशासन और राजनीति के साथ ही सभी क्षेत्रों के लोगों से संबंध बने रहते हैं। ऐसे में समस्याग्रस्त लोग समाचार से हटकर उनके लिए कुछ करने की अपेक्षा कर लेते हैं। अपना भी स्वभाव ऐसा है कि किसी ने अपनी परेशानी बताई तो उसे अपनी समस्या मानकर हल करने में जुट जाते हैं। यह आदत आमतौर पर मेरे लिए मानसिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से क्षति पहुंचाती रही है। चूंकि स्वयं समाचार से हटकर सीधे कुछ करने की स्थिति में नहीं होते और दूसरा अपनी बात मान भी जाए, यह जरूरी नहीं होता। ऐसे में जिसका काम होता है, वह बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोडता। इस तरह सैकडों बार होम करते हाथ जलाने का आनंद उठा चुका हूं। हर ऐसे अनुभव के बाद तय कर लेता हूं कि हमे क्या पडी है, किसी के मामले में पडने की। लेकिन कुछ समय बाद ही कोई आ जाता है और फिर यही पागलपन दोहरा देते हैं और फिर बहुत कुछ भगत रहे होते हैं।
दोस्त सुस्त, दुश्मन चुस्त
जब आप किसी का सच्चे मन से साथ दे रहे होते हैं तो स्वाभाविक रूप से उसके दुश्मन आपको भी अपना दुश्मन मान लेते हैं। इस तरह किसी से दोस्ती निभाने में कई दुश्मन अपने आप बन जाते हैंं। आमतौर पर दोस्त तो तब तक आपके होते हैं, जब तक आप उनके काम आ रहे होते हैं। लेकिन इस दोस्ती से बने दुश्मन लंबे समय तक दुश्मनी का भाव मन में रखे रहते हैं और मौका मिलने पर चुकाने से भी नहीं चूकते। दोस्त सुस्त बने रहते हैं और दुश्मन चुस्त। हालांकि इस बात का संबंध स्थाई दोस्तों से कतई नहीं है। लेकिन अब यह कहना मुश्किल होता जा रहा है कि फलां से तीन या बहुत अधिक सालों से दोस्ती है।
—याज्ञवल्क्य
(सत्य नारायण याज्ञवल्क्य)
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