मप्र: उच्च न्यायालय की अवमानना पर छतरपुर के तत्कालीन कलेक्टर व अतिरिक्त कलेक्टर को जेल

MP High Court: मप्र उच्च न्यायालय ने छतरपुर के तत्कालीन कलेक्टर शैलेन्द्र सिंह व तत्कालीन एडीशनल कलेक्टर अमर बहादुर सिंह को अवमानना के मामले में जेल की सजा सुनाने के साथ ही दोनों पर जुर्माना भी लगाया

जबलपुर। उच्च न्यायालय ने छतरपुर के तत्कालीन कलेक्टर शैलेन्द्र सिंह व तत्कालीन अतिरिक्त कलेक्टर अमर बहादुर सिंह को अवमानना के मामले में सात-सात दिन की जेल की सजा सुनाई। साथ ही 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। न्यायमूर्ति जीएस आहलूवालिया की एकलपीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद गुरुवार को फैसला सुरक्षित रख लिया था, जो आज शुक्रवार को सुनाया गया।

उल्लेखनीय है कि मप्र उच्च न्यायालय के निर्देश पर दोनों अधिकारी न्यायालय में उपस्थित हुए। अतिरिक्त कलेक्टर की ओर से याचिकाकर्ता को आधा वेतन देने की पेशकश की गई। वहीं महाधिवक्ता की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता को शासन अभी वेतन भुगतान कर देगी और बाद में दोषी अधिकारी से वसूल कर ली जाएगी। पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उक्त अधिकारियों को कंटेम्प्ट आफ कोर्ट का दोषी माना था।

यह था मामला
प्रकरण के अनुसार छतरपुर स्वच्छता मिशन के तहत जिला समन्वयक रचना द्विवेदी को बड़ा मलहरा स्थानांतरित कर दिया गया था। दलील दी गई कि संविदा नियुक्ति में स्थानांतरण करने का कोई प्रावधान नहीं है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता डीके त्रिपाठी ने दलील दी कि इस मामले में हाई कोर्ट ने 10 जुलाई, 2020 को स्थानांतरण आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट की रोक के बावजूद याचिकाकर्ता को बड़ा मलहरा में ज्वाइनिंग नहीं देने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इस पर याचिकाकर्ता ने उक्त अधिकारियों के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की।

यह कहा उच्च न्यायालय ने
इस मामले में अवमाननाकर्ता अधिकारियों ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में जवाब प्रस्तुत करने के लिए ओआईसी नियुक्त किया गया था। ओआईसी ने जवाब भी प्रस्तुत किया था। कोर्ट ने कहा कि अवमानना प्रकरण में संबंधित अवमाननाकर्ता को ही व्यक्तिगत हलफनामे पर जवाबदावा पेश करना होता है। कोर्ट ने कहा कि ओआईसी नियुक्त करके अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। चूंकि कोर्ट का स्थगन आदेश था, इसलिए उक्त अधिकारियों को याचिकाकर्ता की सेवाएं जारी रखने देना चाहिए था। कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं करके उक्त अधिकारियों ने अदालत के आदेश का खुला उल्लंघन किया है।