शोध: स्मार्टफोन से बच्चों को बढ़ा मानसिक रोगों का खतरा

वाशिंगटन। छोटे बच्चों के हाथों में स्मार्टफोन या टैबलेट आपको यदि अच्छा लग रहा है तो इसका मतलब है कि आपको इसके खतरे का अनुमान नहीं है। एक वैश्विक सर्वेक्षण के दौरान यह बात सामने आई है कि एक बच्चा जितनी कम उम्र में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने लगता है, युवावस्था में मानसिक समस्याओं का उसे उतना ही ज्यादा सामना करना पड़ सकता है।

अमेरिका स्थित सेपियन लैब्स (Sapien Labs) की ओर से यह सर्वेक्षण वैश्विक स्तर पर जारी कियाा। भारत सहित 40 से देशों में हुए इस शोध में यह भी पाया गया है कि आज के जिन युवाओं ने बचपन में बहुत छोटी उम्र से स्मार्टफोन इस्तेमाल करना शुरू किया था, उनके दिमाग में आत्महत्या की भावनाएं ज्यादा आती हैं। ऐसे युवाओं में दूसरों के खिलाफ गुस्से की भावना भी ज्यादा रहती है और अलग-अलग रहने और मतिभ्रम की समस्या भी अधिक देखने को मिलती है।

उम्र बढ़ने के साथ घटते हैं दुष्परिणाम
शोघ के अनुसार महिलाओं में जिन्हें 10 साल की उम्र में पहला स्मार्टफोन मिला था, उनमें ऐसी समस्याओं का सामना करने वालों की संख्या घटकर 61% और 15 साल में पहली बार स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों में यह 52% रह गया। इसी तरह, जिन्हें 18 साल की उम्र में पहला स्मार्टफोन मिला, उनमें 46% मानसिक रूप से परेशान थीं। यही ट्रेंड युवा पुरुषों में भी पाया गया है, लेकिन उनकी संख्या कम होती चली गई। जैसे जिन्हें 6 साल की उम्र में पहली बार स्मार्टफोन का चस्का लग गया था, उनमें करीब 42% को मानसिक दिक्कतें झेलनी पड़ रही थी। लेकिन, 18 वर्ष की आयु में पहली बार स्मार्टफोन लेने वालों में ऐसी समस्याओं से पीड़ितों की संख्या 36% रह गई।

जितनी छोटी उम्र उतनी बड़ी समस्या
न्यूरोसाइंटिस्ट, सेपियन लैब्स की फाउंडर और चीफ साइंटिस्ट तारा त्यागराजन(न्यूरोसाइंटिस्ट) ने कहा, ‘आपको जल्द फोन मिलने का मतलब है वयस्क के रूप में ज्यादा स्वास्थ्य समस्याएं, खासकर आत्महत्या के विचार, दूसरों के प्रति गुस्से की भावना और सच्चाई से भागने की प्रवृत्ति; कुल मिलाकर सामाजिक आत्मीयता की कमजोर भावना…….।’ माता-पिता के लिए न्यूरोसाइंटिस्ट का स्पष्ट संदेश है कि ‘जितना भी हो बच्चों को स्मार्टफोन देने में देरी करें, जितने बड़े हो जाएं उतना अच्छा।….इसकी जगह बच्चों के सामाजिक विकास पर ध्यान लगाएं, यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ही उपयोगी है, जिसे कि फोन ने खत्म कर दिया है।’

त्यागराजन का कहना है कि आंकड़े बताते हैं कि बच्चे रोजाना 5 से 8 घंटे स्मार्टफोन में दे देते हैं। जबकि, स्मार्टफोन से पहले यह समय उनका परिवार और दोस्तों के साथ बीतता था या दूसरी गतिविधियों में लगे होते थे। लेकिन, आज ऐसा समय उन्हें नहीं मिल रहा है।

भारत में वैश्विक औसत से अधिक
यह शोध भारत की मौजूदा स्थिति की वजह से और भी महत्वपूर्ण हो गया है। क्योंकि, पिछले साल McAfee के ग्लोबल कनेक्टेड फैमिली का शोध जारी हुआ था। इसके अनुसार भारत में 10 से 14 साल के 83% बच्चे स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। यह आंकड़ा अंतरराष्ट्रीय औसत 76% से 7% ज्यादा है।