गणतंत्र, तुम्हारा अभिनंदन
तंत्रों की बड़ी विकट जकड़न
बने विधान यहां उलझन
सुफलों पर नागों का डेरा
आहत होता जन साधारण
पांवों में बेडी¸, हाथ बंधे
गणतंत्र, तुम्हारा अभिनंदन।
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गिरना, उठने की शर्त बनी
झुकना, बढ़ने की रीत बनी
सच्चाई का जीना दुष्कर…
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