मध्यप्रदेश— सांची में अदृश्य चक्रव्यूह में उलझे प्रभुराम
रायसेन। मध्यप्रदेश में असामान्य कारण से हो रहे विधानसभा उपचुनाव में स्थितियां भी असामान्य बनी हुई हैं। दिग्गज नेता चुनाव को जुमलों में उलझाने में लगे हैं, जबकि जनता मुद्दों की बात कर रही है। राजधानी के पडौसी रायसेन जिले के सांची विधानसभा क्षेत्र में सिंधिया के साथ कांग्रेस से त्यागत्र देकर भाजपा में भी आकर मंत्री बने डॉ प्रभुराम चौधरी की स्थिति को देखकर यह समझा जा सकता है।
अपने परंपरागत क्षेत्र सांची से डॉ प्रभुराम चौधरी अब तक के सबसे कठिन चुनाव का सामना कर रहे हैं। डॉ प्रभुराम चौधरी एक अदृश्य चक्रव्यूह में उलझे हुए हैं। विशेष बात यह है कि यह चक्रव्यूह विपक्ष यानि कांग्रेस के द्वारा नहीं रचा गया। ‘शुभ चौपाल’ द्वारा विधानसभा क्षेत्र की स्थितियों के लगातार आंकलन से यह बात सामने आई है।
सांची विधानसभा क्षेत्र विदिशा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है। विदिशा संसदीय क्षेत्र से भाजपा के शीर्ष नेता अटलबिहारी वाजपेयी और सुषमा स्वराज के साथ ही शिवराज सिंह चौहान और रामपाल सिंह जैसे नेता प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। विदिशा सिंधिया परिवार के प्रभाव क्षेत्र में रहा है। कांग्रेस ने नए प्रत्याशी पर दांव लगाया है। जिले में कांग्रेस के किसी भी नेता का सीधा प्रभाव नहीं है। यह स्थितियां भाजपा प्रत्याशी डॉ प्रभुराम चौधरी के पक्ष में जानी थीं, लेकिन ऐसा नहीं दिखाई दे रहा।
‘शुभ चौपाल’ ने सांची विधानसभा क्षेत्र की स्थितियों को बारीकी से समझा तो यह बात सामने आई कि इस असाधारण उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस के नेताओं की हवा—हवाई बातों को जनता गंभीरता से नहीं ले रही। एक विश्लेषक कहते हैं कि दोनो दलों के बडों से लेकर स्थानीय नेता तक जनता का भरोसा खो चुके हैं। जनता बडी बातों का आनंद तो उठा रही है, लेकिन भाजपा के पंद्रह साल और कांग्रेस के सवा साल में स्थानीय नेताओं के उनके गांव—कस्बे तथा अन्य मुद्दों पर रवैए को लेकर तीखे सवाल भी उछाल रही है। ऐसे में सांची विधानसभा की स्थितियां रोचक और अध्ययन योग्य बनी हुई हैं।