मध्यप्रदेश— जीवन रेखा नर्मदा को विकृत कर रहे ठेकदार और श्रद्धालु
भोपाल। मध्यप्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा को प्रदेश में वैध—अवैध ठेकेदार और श्रद्धालु, दोनो विकृत कर रहे हैं। प्रदेश के लोक जीवन में समाई पुण्य सलिला नर्मदा के प्रति सरकार और समाज की अनदेखी चिंताजनक है।
‘शुभ चौपाल’ द्वारा रायसेन, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर जिलों में नर्मदा तटों की स्थिति का आंकलन करने पर यह बात सामने आई है। नर्मदा मध्यप्रदेश की सबसे बडी नदी है और विंध्य तथ सतपुडा पर्वतमालाओं के बीच बहती यह आदिकाल से ही यह ऋषि-मुनियों की तपोभूमि और लोकआस्था का केंद्र रही है। पूर्णबंदी के समय नर्मदा के जल और तटों पर सुधार हुआ था, जो अब पूर्ववत् होते जा रहे हैं।
ठेकेदार कर रहे मनमानी
नर्मदा की रेत प्रदेश के बडे वैध— अवैध कारोबारों में शामिल हो चुकी है। सभी को पता है कि नर्मदा के तटों पर वैध— अवैध रेत उत्खनन में ठेकेदार, राजनेता, अधिकारी और बाहुबली एकमत होते हैं। इसलिए बिना नियमों— आदेशों की परवाह के मनमाने ढंग से नर्मदा की रेत का अवैध उत्खनन चल रहा है। शोषण की सीमा तक भारी मशीनो से नर्मदा की रेत के अवैध उत्खनन से नर्मदा तटों के स्वरूप विकृत हो रहे हैं।
श्रद्धालु भी पीछे नहीं
नर्मदा प्रदेश के लोक जीवन का अभिन्न अंग है। बडी संख्या में श्रद्धालु नर्मदा तटों पर स्नन करने जाते हैं। प्रतिमाह पूर्णिमा और अमावस के साथ ही विशेष पर्वों तथा अवकाश के दिनों में यह संख्या बहुत अधिक हो जाती है। ये श्रद्धालु नर्मदा में डुबकी लगाकर स्वयं भले ही पवित्र हो जाते हैं, लेकिन अपने साथ पॉलीथिन और अन्य सामग्री भी ले जाते हैं, जिसे वहीं छोडने से नर्मदा अपवित्र हो रही होती है।’शुभ चौपाल’ ने यह भी पाया कि नर्मदा तटों के किनारे दुकानदार भी ऐसी सामग्री बढा रहे होते हैं।
परिणामविहीन प्रयास
नर्मदा के संरक्षण, शुद्धीकरण और सौन्दर्यकरण को लेकर शासन और समाज कई योजनाएं गिना देता है। ‘शुभ चौपाल’ ने पाया कि इनका कुछ असर बडे और शहरी नर्मदा तटों पर तो दिखाई देता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश तटों पर ये प्रयास परिणामविहीन हैं। नर्मदा भक्तों की बहुत बडी संख्या और सार्वजनिक रूप से आस्था प्रदर्शन के बीच यह स्थिति आश्चर्यजनक लगती है।