मध्यप्रदेश— प्रतिष्ठा के साथ ही भविष्य का निर्धारण भी करेगा उपचुनाव

भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा उपचुनाव भले ही बिहार विधानसभा चुनाव के कारण प्रमुख सुर्खियों में नहीं आ पा रहा, लेकिन यह भाजपा और कांग्रेस की प्रतिष्ठा के साथ ही इसके कई नेताओं के भविष्य का भी निर्धारण करेगा। चुनाव परिणाम का तात्कालिक प्रभाव भले ही कम हो लेकिन इसका दूरगाामी असर अधिक होगा।

प्रत्यक्षत: देखा जाए तो विधानसभा उपचुनावों के परिणाम प्रदेश में सरकार तय करेंगे। कांग्रेस और भाजपा चुनाव को अपने पक्ष में करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। इन 28 विधानसभा क्षेत्रों पर चुनाव परिणाम से भले ही प्रदेश में सत्तारुढ भाजपा सरकार को तात्कालिक संकट नहीं है, लेकिन पार्टी और इसके प्रमुख नेताओं की साख पर अवश्य असर होना है। कांग्रेस के लिए उपचुनाव अधिक चुनौतीपूर्ण हैं। चुनावी माहौल में ही भाजपा कांग्रेस पर आक्रामक रहकर लगातार नुकसान पहुंचा रही है। ऐसे में सरकार बनााने लायक सीट जीतने से ज्यादा कांग्रेस के लिए अपना घर बचाए रखने की चुनौती है। पिछले छह माह में कांग्रेस के 26 विधायको ने हाथ छोड़ा है। इन 28 में से 25 सीट पर चुनाव कांग्रेस विधायकों के दल बदलने से और तीन विधायको के निधन के कारण हो रहा है। एक विधायक ने तो इसी चुनावी माहौल में ही कांग्रेस छोड दी।

‘शुभ चौपाल’ से बातचीत के दौरान कांग्रेस के चुनावी क्षेत्रों में कमान संभाले नेताओं ने माना कि वैसे तो पार्टी पूरी ताकत से चुनाव लड रही है, लेकिन उन छह सीट पर ज़्यादा ध्यान दे रही है, जहां 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवार बहुत कम अंतर से जीते थे। इस बार ये सभी विधायक भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। पार्टी जीत की संभावना वाले ऐसे क्षेत्रों पर रणनीति में माहिर नेताओं को लगाए हुए है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के अधिक प्रभाव वाले ग्वालियर— चंबल क्षेत्र और उनके करीबी प्रत्याशियों को घेरने पर भी पूरा ध्यान दिया गया है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ‘शुभ चौपाल’ से अनौपचारिक चर्चा में यह मान रहे हैं कि कांग्रेस उपचुनाव में सम्मानजनक प्रदर्शन में सफल रहेगी। लेकिन सरकार बनाने लायक सीट जीतने के सवाल पर कांग्रेस सीधा जबाब देने से बच रही है। कारण साफ है कि भाजपा को बहुमत का आंकड़ा हासिल करने के लिए सिर्फ नौ-दस सीट की जरूरत है, जबकि कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचने के लिए सभी सीट या कम से कम 21 सीट पर जीत दर्ज करनी होगी। तब वह दूसरे दलों के साथ मिलकर गठबंधन सरकार का गठन कर सकती है।

यह है विधानसभा की स्थिति
मध्य प्रदेश विधानसभा में कुल 230 सीट हैं। इनमें से 28 पर उपचुनाव हो रहे हैं। वर्तमान में भाजपा के 107 और कांग्रेस के 87 विधायक हैं। ऐसे में भाजपा को बहुमत के लिए 9 और कांग्रेस को सभी 28 सीट की जरूरत होगी। दूसरे छोटे दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को उपचुनावों में कम से कम 21 सीट पर अपनी जीत दर्ज करनी होगी।

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