मप्र उच्च न्यायालय— सार्वजनिक रूप से सरगर्मी पैदा करने वाले मामले अदालत के फैसले को प्रभावित नहीं कर सकते

जबलपुर। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा, “न्याय प्रशासन के पदानुक्रम में, किसी भी स्तर पर, न्यायालयों को सार्वजनिक धारणा की कर्णवेधी ध्वनियों का बंधक नहीं बनाया जा सकता है। जिस दिन यह हो जाएगा, उस दिन के बाद यह नहीं कहा जाएगा कि अदालतों को प्रभावित नहीं होती हैं।” जस्टिस अतुल श्रीधरन की खंडपीठ ने उक्त टिप्‍पणी दो सगे भाइयों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की। दोनों भाई एक अपराध के तथ्य के समक्ष कथित साजिशकर्ता या सहायक हैं, जिसमें एक अंडर ट्रायल ,इखलाक कुरैशी की जिला न्यायालय परिसर, छिंदवाड़ा में तीन हमलावरों ने हत्या कर दी थी। कुरैशी को रिमांड सुनवाई के तहत अदालत में पेश किया गया था।

आवेदकों में से एक (नरेंद्र पटेल) के संबंध में आरोप था कि उसने पहले भी इकलाख कुरैशी को मारने का इरादा ने किया था, क्योंकि मृतक इकलाख कुरैशी ने उसकी (नरेंद्र पटेल) हत्या करने की कोशिश की थी। आवेदक नरेंद्र पटेल की हत्या के प्रयास के मामले में ही इकलाख कुरैशी को एक निचली अदालत में सुनवाई के लिए पेश किया गया था, जहां उनकी हत्या कर दी गई। न्यायालय ने कहा कि आवेदक पहले ही तीन साल से अधिक समय अंडरट्रायल के रूप में पूरा कर चुका है, और उसके खिलाफ इकलाख कुरैशी की हत्या की साजिश में शामिल होने सबूत हैं।

कोरोना महामारी के कारण ट्रायल में हुई देरी के आधार पर व‌िद्वान वकील ने आवेदकों की जमानत मांगी थी। आपत्त‌िकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि यदि कैदियों को केवल वायरस से संक्रमित होने के आधार पर जमानत दी जाएगी तो इससे जेलों को खाली करना होगा और समाज में खूंखार अपराधियों को रिहा करना होगा, जो अन्यथा जमानत के पात्र नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि जिस तरह से ट्रायल कोर्ट की सीमा में अपराध किया गया था, वह आवेदकों के दुस्‍साहस और कानून के लिए उनके सरासर तिरस्कार को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि, आवेदकों पर जिस अपराध का आरोप लगाया गया है, उसने पूरे शहर को भयभीत कर दिया था।

वर्चुअल मोड से गवाहों की जांच करने पर आवेदकों की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि कोई भी सक्षम बचाव वकील कभी वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से भौतिक गवाहों की जांच के लिए सहमत नहीं होगा क्योंकि बचाव पक्ष के वकील अलग शहर में बैठे हो सकते हैं, जज न्यायालय में और एक गवाह किसी तीसरे स्‍थान पर। आवेदकों की ओर से पेश वकील ने यह भी कहा कि छोटे शहरों में, जहां इंटरनेट बैंडविड्थ और भी कम है (शहरों की तुलना में), बचाव पक्ष के वकील द्वारा पूछे गए सवाल और गवाह द्वारा दिए गए जवाब के बीच अंतराल अधिक हो सकता है। ऐसी स्थिति में, उन्होंने तर्क दिया कि, बचाव पक्ष के वकील के लिए यह आकलन करना संभव नहीं होगा कि क्या भौतिक गवाह द्वारा किसी प्रश्न का उत्तर देने में देरी गवाह के प्रश्न को देर से सुनने के कारण हुई है या सवाल का उत्तर क्या और कैसे देना है, गवाह द्वारा यह सोचने के कारण हुई है। आवेदकों की ओर से पेश वकील के दलीलों के जवाब में कोर्ट ने कहा, “आवेदकों की ओर से पेश वकील की दलीलों को खोखले तर्क के रूप में खारिज़ नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह एक संभाव्यता है, जो कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाहों की जिरह करते समय हो सकती है।” कोर्ट की राय पर प्रभाव पर विचार आपत्तिकर्ता की ओर से पेश वकील ने अदालत के सामने तर्क रखा कि कि अपराध सनसनीखेज था और अपराध की व्यापकता और भयावहता के बारे में मीडिया और प्रेस में काफी टिप्पण‌ियां की गई थीं और ऐसा अपराध छिंदवाड़ा जैसे छोटे शहर में कभी नहीं हुआ था।

अदालत ने वकील के रुख से अलग राय रखते हुए कहा, “यदि न्यायालय मामलों में क्या किया जाना चा‌हिए, या अपराधी कौन है, इस पर निष्क्रिय या अचेतन राय के आगे झुकता है…संविधान, स्वतंत्रता, और व्यक्ति के जीवन की रक्षा, जिसे संरक्षित करने की वह बात करता है, वह उस कागज से अधिक मूल्यवान नहीं होगा, जिस पर वह मुद्रित होता है।” कोर्ट ने कहा, “केवल इसलिए कि एक मामले की के कारण सार्वजनिक रूप से सरगर्मी रही है, और मीडिया में व्यापक रूप से चर्चा की गई है, जमानत आवेदन का फैसला करते समय अदालतों के लिए एक विचार ‌का विषय नहीं हो सकता है।” आरोपी को जमानत का लाभ देने पर विचार न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि मुकदमे की प्रक्रिया खुद बाधित हुई, जिसमें अभियुक्त की कोई गलती नहीं है और अभियोजन पक्ष की ओर से अत्यधिक विलंब किया गया है, वह किन्हीं कारणों से गवाहों का को पेश करने में असमर्थ रहा हैं, या गवाहों की संख्या इतनी ज्यादा है कि कि ट्रायल कोर्ट के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, कई वर्षों के बावजूद मामला समाप्त नहीं हो सकता है। ऐसी स्थितियों में, न्यायालय ने निर्णय लिया कि, अदालतों को अपने विवेक का उपयोग करना होगा, जिसके तहत अंडर-ट्रायल की स्वतंत्रता को बहाल किया जा सकता है और उचित शर्तें, जिनका जमानत के न्यायशास्त्र सीधा संबंध हो, उन्हें लगाया जा सकता है। न्यायालय ने यह भी कहा कि जमानत आदेश पारित करने समय, अदालत को इस आशंका को ध्यान में रखना चाहिए कि अभियुक्त जमानत पर छूटने के बाद भौतिक गवाहों को प्रभाव‌ित करने का प्रयास न करे। न्यायालय ने यह भी कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में, वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सभी गवाहों की जांच करना संभव नहीं है। कोर्ट का अंतिम आदेश मौजूदा परिस्थितियों में, आवेदनों को अनुमति दी गई और जमानत प्रदान की। आवेदकों को रिहाई के बाद छिंदवाड़ा नगरपालिका की सीमा से बाहर रहने और मुकदमे के समापन तक जबलपुर में रहने का निर्देश दिया गया।

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