बकस्वाहा: वन संपदा का विनाश और विकास के सपने— एक

—याज्ञवल्क्य—
बकस्वाहा। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले की एक ऐसी तहसील, जिसका नाम मैने हाल ही के कुछ महीने से पहले शायद ही सुना हो। क्षेत्रीय लोग इसका उच्चारण ‘बकसबाहा’ के करीब— करीब करते हैं। सोशल मीडिया पर बार— बार बकस्वाहा के जंगल बचाने की बात पढने— देखने में आई तो इसमें मेरी भी रुचि जागी। मेरे मित्र और पर्यावरण के लिए गंभीरता से काम कर रहे चौधरी भूपेंद्र सिंह इस मुहिम में प्रारंभ से ही सक्रिय रहे हैं। उन्होने इस विषय पर वेबिनार का समाचार विस्तार से https://www.subhchoupal.com/ के लिए लिखा। करीब बीस सालों से पर्यावरण के लिए काम कर रहीं करुणा रघुवंशी के पर्यावरण के प्रति जुनून ने प्रभावित किया और फिर यहां के जंगल बचाने के लिए काम कर रहे अधिकांश लोगों के विचारों— कामों से जुडता चला गया।

बकस्वाहा छतरपुर जिले की तहसील और जनपद मुख्यालय है। नगर परिषद होने के नाते इसे अर्द्धशहरी क्षेत्र कह सकते हैं, और यह बहुत कुछ ऐसा ही है। बडा मलेहरा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली इस तहसील की आबादी 2011 की जनगणना के आधार पर छतरपुर जिले की अन्य तहसीलों में सबसे कम यानि 90 हजार 277 है। इस जनपद पंचायत में 39 ग्राम पंचायतें और 131 गांव हैं। विरल आबादी घनत्व की इस तहसील में बकस्वाहा ही एकमात्र कस्बा है और करीब अस्सी फीसदी आबादी गांवों में रहती है। यहां सघन वन हैं, लेकिन यह सूखा प्रभावित क्षेत्र है, जहां पानी का संकट बना रहता है। हर गांवों में बेराजगारों की लंबी कतार है और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हैं।

एक पत्रकार के रूप में मौके पर जाकर सबकुछ देखने— परखने की आदत रही है। इसी आदत ने बकस्वाहा के जंगल और वहां के एक दर्जन से अधिक गांवों तक पहुंचने को प्रेरित किया। सागर तक आना— जाना होता रहा है और बुंदेलखंड तथा यहां के लोगों से आत्मीय जुडाव है। सागर के बाद जितना आगे चलते रहे, उतनी ही यह धारणा बनती गई कि वास्तव में बुंदेलखंड में विकास बडे शहरों से आगे नहीं बढ सका है। निर्माण कार्य बता रहे थे कि विकास पर बडी रकम खर्च हुई है, लेकिन नाममात्र को सडकें, टूटे हुए नए बने पुल, नाम को बने स्टॉप डेम और बिना गायों की गौशालाएं बता रही थीं कि सरकार और जमीनी विकास के बीच दलालों का प्रभाव जमकर काम करता रहा है। एक बात साफ दिखाई दी कि क्षेत्र का विकास तो नहीं हुआ, लेकिन यहां अधिकारियों, कर्मचारियों, नेताओं, ठेकेदारों और उनसे जुडे लोगों ने विकास को जनता तक पहुंचने से पहले ही अपने घरों तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोडी है।

यहीं से हम बकस्वाहा के जंगलों को बचाने के लिए देश— विदेश में चल रही मुहिम और इसका स्थानीय स्तर धरातल पर कहने भर को समर्थन और मुखर विरोध को समझ सकते हैं। अधिकांश लोगों को यह जानना आश्चर्य का कारण भी हो सकता है कि बकस्वाहा और गांवों के लोग या तो यहां की वन संपदा बचाने के लिए चल रही मुहिम के प्रति उदासीन हैं, या फिर इसका मुखर विरोध कर रहे हैं। पर्यावरण जीवन से जुडा विषय है, इसमें कोई संदेह नहीं, लेकिन बकस्वाहा की हीरा खदान के संदर्भ में स्थानीय लोगों की सोच अलहदा दिखाई देती है। हमने सभी पक्षों से विस्तार से चर्चा की और उनका पक्ष समझने का प्रयास किया। क्रमश: जारी. कृपया पढते रहें— https://www.subhchoupal.com/

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