कोरोना– दूसरी लहर: आपदा या अवसर?

डॉ ओपी चौधरी
एसोसिएट प्रोफेसर, मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पीजी कॉलेज, वाराणसी
मो:9415694678

“मिट्टी वही मुझ पर गिरेगी,जो बादशाहों पर गिरी होगी”, यह गीत है पाकिस्तान की मशहूर गायिका नसीबो लाल का, जितनी हकीकत लिए हुए है, उतनी ही दूर भी है। कोरोना के इस कातिल दौर में परेशान हर इंसान है, लेकिन मायने सभी के अलग अलग हैं। कोई दो जून की रोटी की जुगाड़ में, कोई आपदा को अवसर के रूप में बदलकर लाखों का वारा न्यारा कर रहा है, वह उसी में परेशान है कि इस विपत्ति में भी संपत्ति में इजाफा कैसे होगा? कोई ऑक्सीजन व रिमेडेसिविर को कालाबाजारी में लिप्त है, तो कोई नकली सेनेटाइजर बनाकर बेचने में मशगूल है, कोई ठगने के और तरीके अपना रहे हैं। एंबुलेंस वाले मनमाना किराया वसूल रहे हैं, चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है, जबकि अगले पल का कोई ठिकाना नहीं। मैं अपनी दो भतीजियों की शादी 22 एवम् 25 अप्रैल को अपने गांव(अंबेडकरनगर जनपद)से संपन्न कराने के उपरांत काशी आया। व्हाट्सएप से मिले संदेश ने अंतर्मन को झकझोर दिया। कई अंतरंग मित्रों, रिश्तेदारों व अन्य के तिरोहान का समाचार हृदय विदारक रहा, सभी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि, यह अत्यंत सूक्ष्म प्रतिदर्श है, जो निकटस्थ हैं, बाकी तो तांडव हर तरफ मचा है। अब तो पंचायत चुनाव और 2 मई को हुई मतगणना के बाद से बहुत बड़ी संख्या में गांवों में कोरोना मरीज मिल रहे हैं,लेकिन जांच के अभाव में, सुविधा के अभाव में उनकी पहचान व समुचित इलाज नहीं हो पा रहा है, मौतों की संख्या में वृद्धि हुई है। कोरोना कितनों का जीवन तबाह करेगा, तय नहीं लेकिन जो स्वजन और आत्मीय जन बिछड़ जा रहे हैं, उनका अभाव हमें ताउम्र सालता रहेगा, जिसकी पीड़ा हमें इस मनहूस कोविड –19 की याद दिलाती रहेगी।

आज सभी कह रहे हैं कि वैज्ञानिकों ने पहले ही कह दिया था कि कोविड –19 की दूसरी लहर दस्तक देने वाली है, पर हुकूमतों का ध्यान कहीं और था। लोकतंत्र के नाम पर समूची जनता को चुनाव में झोंक देना सीधे मौत के मुंह में ठेलना है। चुनाव आयोग के लिए तो मद्रास के उच्च न्यायालय ने “सबसे गैर जिम्मेदार संस्था” बताते हुए तीखी टिप्पणी की कि निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के खिलाफ हत्या के आरोपों में भी मामला दर्ज किया जा सकता है ।लेकिन उन सियासत के मनसबदारों का क्या होगा जो बड़ी बड़ी चुनावी रैलियां कर रहे थे और कहने में भी जरा सा गुरेज नहीं कर रहे हैं कि इससे बड़ी रैली कहीं हुई है क्या, आप लोगों का इतनी बड़ी संख्या में यहां आना मेरे लिए गर्व की बात है? मित्रों वहां न मास्क है, न दो गज की दूरी, सेनेटाइजर हाथी के दांत की तरह, लेकिन दहाड़ ऐसी की कोरोना से बचाव के लिए मास्क, साबुन से हाथ धोना, दो गज की दूरी है बहुत ज़रूरी है, दिल्ली से पूरे देश में सुनाई पड़ जाती है। जो सुनने से वंचित रह जाते हैं वे मन की बात से पकते हैं, क्या पकुसाते हैं। मद्रास हाईकोर्ट का यह कहना कि दूसरी लहर के लिए निर्वाचन आयोग अकेले जिम्मेदार है, बहुत उचित है। किंतु बड़ी— बड़ी चुनावी सभाओं को संबोधित करने वाले हमारे नेताओं को भी इस जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया जा सकता है, जिनके सामने सभी बिना मास्क और सामाजिक दूरी के लोग एक के ऊपर एक चढ़कर, बढ़ चढ़कर रैलियों में,जन सभाओं में आ जा रहे थे। चुनावों की व्यस्तता, सभी को पस्त किए थी। चिकित्सा व्यवस्था नाकाफी साबित हो रही है, ऑक्सीजन की कमी लोगों का दम घोंट रहा है, चिकित्सालयों में बिस्तरों का अभाव, वेंटिलेटर का पूरी क्षमता से काम न कर पाने से पूरा जनमानस सशंकित व भयग्रस्त है। इतनी वेबसी पहले कभी नहीं दिखी।

मैने पहले लिखा है कि भतीजियों की शादी के सिलसिले में घर(गांव) में था, जिसमें 25 + 25 लोगों की अनुमति थी, किसी तरह हुई, घर के ही सभी सदस्य नहीं सम्मिलित हो सके। दूसरी ओर उत्तरप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था की मजबूती के लिए मतदान हुआ। उसका और कई राज्यों के विधान सभाओं में हो रही चुनावी रैलियों की झलक की कुछ बानगी प्रस्तुत है। इस दौरान बिना मास्क के झुंड में महिलाओं की टोली चुनाव प्रचार में बिना मास्क, सेनेटाइजर, सामाजिक दूरी के, मशगूल थीं ।पुरुषों की अलग टीम, जिसमें कुछ मास्कधारी दिखे। सभी के हाथ हैंडविल से लैस, सभी देने को आतुर, हाथ में न पकड़िए तो नाराज़, मेरे और मेरे अनुज जो अधिवक्ता हैं, का सामना जिला पंचायत सदस्य के एक महिला उम्मीदवार के प्रचारकों से हो गया। पर्चा हाथ में न पकड़ने से नाखुश, गेट पर चिपका दिया उसके लिए बहस अलग। आप मन की बात में तीन चार उपाय कोरोना से बचाव के सुनते हैं, उसका पालन करें? या इन चुनाव प्रचार वालों से बचें। आप स्वयं सतर्क रह सकते हैं, लेकिन अगला आपको टक्कर मार कर चल देगा।

सही ही लिखा गया है कि अभाव और दर्द की हर तरफ बिखरी गाथाएं गवाह हैं, निश्चित ही देश में जमकर जमाखोरी और कालाबाजारी हुई है, हमारी सरकारों से आने वाले समय में जरूर पूछा जायेगा कि जब लूट मची थी, तब लुटेरों का हिसाब— किताब कितना किया गया?, जमाखोरों के खिलाफ सख्ती की बात प्रधानमंत्री की बैठक में भी उठी थी, लेकिन जमीन पर कितनी सख्ती हुई? हमारी व्यवस्था में आम और खास का फर्क तो हर जगह और हर स्तर पर है, इसमें भी संदेह नहीं कि अनेक ऐसे खास लोग ही लूट या जमाखोरी की स्थिति पैदा करते हैं। जब व्यवस्था के ही कुछ खास हिस्से जमाखोरी के लिए माहौल तैयार कर रहे हों, तब जमाखोरों के खिलाफ कदम कितनी ईमानदारी से उठेंगे? इतिहास में दर्ज किया जायेगा कि देश में जब जरूरत थी, तब लोगों को कई गुना कीमत पर दवाइयां बेची गईं और दोगुनी कीमत पर सामान। कच्चे नारियल की कीमत किसान को बमुश्किल प्रति नग दस रुपए मिलते हैं, लेकिन यही नारियल सामान्य ठेलों पर आठ गुना दाम पर बेचे जा रहे हैं। आपदा को कैसे अवसर में बदला जा सकता है, यह कई अस्पतालों, कंपनियों से लेकर सामान्य ठेलों वालों ने बता दिया? इसमें सरकार क्या कर सकती थी, यह उन्हें आगे चलकर जवाब देना होगा।

बस निवेदन इतना है कि यह समय रोगियों की सेवा का है, उनका मनोबल बढ़ाने का है। किसी भी सोशल मीडिया पर लोगों को अनावश्यक अवसाद में डालने वाली पोस्ट पर लगाम कसना होगा ,सरकार को भी और अधिक मुस्तैदी से कार्य को अंजाम देना होगा, क्योंकि तीसरी लहर की भी सुगबुगाहट है ही। टीकाकरण से बहुत बड़ी आबादी को आच्छादित करना होगा। वहीं, सही आलोचनाओं के आलोक में आगे बढ़ना होगा और नसीबो लाल के बोल को दिमाग में रखना होगा। निश्चित ही हम जीतेंगे, कोरोना हारेगा। जोहार प्रकृति! जोहार धरती मां!
—यह लेखक के निजी विचार हैं, संपादकीय सहमति आवश्यक नहीं है—

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