—​संपादकीय—शुभ चौपाल— सरकार, और कितना समय चाहिए?

—याज्ञवल्क्य—
subhchoupal@gmail.com
कोराना विषाणु मानवता का अब तक का ज्ञात सबसे बडा शत्रु है। इसके निरन्तर वेष बदलने से सभी अनुमान गडबडा जाते हैं। यह बात बीते एक साल में प्रकारान्तर से कई बार लिखी जा चुकी है। एक साल पहले कोरोना के बारे में हमारी जानकारियां बहुत कम थीं। इस अवधि में इसने लगातार प्रसार किया है। हमारे पास बहुत सारे आंकडे और जानकारियां इससे निपटने के लिए उपलब्ध रही हैं। बीते समय में देश की अधिकांश जनता ने वह किया, जो सरकार ने चाहा। कुछ हठधर्मी लोगों की बात छोड दी जाए तो देश के लोगों ने कोरोना महामारी की गंभीरता और इस संबंध में सरकारी प्रयासों का समर्थन किया। देश के अधिकांश लोग इसलिए अपने परिवार को कठिनतम स्थितियों में रखे रहे कि कोरोना विषाणु से चल रहे युद्ध को जीतना है।

अब एक साल बाद स्थितियां उलट हैं। देशभर से मिल रही सूचनाएं बता रही हैं कि कोरोना विषाणु से निपटने के सरकारी प्रयास अधिक प्रभावी नहीं रहे हैं। संक्रमितों की संख्या दो लाख पार कर रही है और मृतकों की संख्या भी लगातार बढ रही है। देश के अस्पतालों, श्मशानों और कब्रिस्तानों से आ रही जानकारियां रोंगटे खडे कर रही हैं। कोरोना की दूसरी लहर ने हमें बता दिया है कि कोरोना संकट को लेकर हमारी नीतियां और तैयारियां अभी भी वैसी ही हैं, जैसी एक साल पहले थीं। हां, अब सरकारों का रवैया बदल चुका है। कठिनतम आपदा के इस समय में केंद्र सरकार राज्यों को निर्णय लेने को कह रही है। राज्य सरकारें जिला स्तर पर ये दायित्व टाल रही हैं। यह कैसी विडंबना है कि जनहित में कठोर निर्णय लेने से भी सरकारें भाग रही हैं।

सरकारों को मान भी लेना चाहिए कि बीते एक साल में कोरोना से लडाई की तैयारी वास्तविक धरातल पर न होकर कागजों में ही चल रही थी। प्रत्येक स्तर पर तथ्य और स्थितियां इसे प्रमाणित कर रही हैं। अस्पतालों में स्थान नहीं, दवाइयों से लेकर आक्सीजन तक का टोटा है। मृतकों के अंतिम संस्कार की कहानियां सभी को दुखी कर रही हैं। सरकार— प्रशासन इसके लिए जनता पर दायित्व लादने में लगी रहती है। सरकार और उसके निर्णयों के क्रियान्वयन के लिए प्रशासनतंत्र के पास दण्डाधिकार होता है। प्राचीनकाल से ही यह बात स्थापित है कि व्यापक लोकहित में राज्य को कठोर निर्णय लेना और उन्हे लागू करना चाहिए। बात जब करोडों लोगों के जीवन की हो तो सरकार को कठोरतम निर्णयों से बचना नहीं चाहिए। इस देश के अधिकांश नागरिक विधि और व्यवस्था का पालन करने वाले हैं। सरकार के पूर्णबंदी जैसे आदेश अत्यंत असुविधाओं के बाद भी लोग मानते रहे हैं।

यह सत्य है कि बीते एक साल ने देश के अधिकांश परिवारों की सामान्य व्यवस्थाओं को ध्वस्त किया है। इसके बाद भी बात जब जीवन से जुडी हो तो जनता सरकार के किसी भी निर्णय को स्वीकार कर लेती है। सरकार! तैयारियों के लिए एक साल कम नहीं होता। कोरोना जैसी विभीषिका से निपटने के लिए आपको और कितना समय चाहिए? यह ध्यान रखें कि एक— एक दिन जनता के लिए बडी कठिनता से बीत रहा है। अब केंद्र अथवा राज्य सरकार बिना देरी किए आवश्यक हो तो जनता के प्रति अपना दायित्व निभाते हुए एक बार में ही दो सप्ताह अथवा जितना आवश्यक हो, उतनी पूर्णबंदी की घोषणा कर दे अथवा अन्य प्रभावी कदम उठाए।
—शुभ चौपाल— अंक—36—

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