सरकारें आत्मरति में लीन हैं, अधिकारी कागजों का पेट भरने में लगे है, ऐसे कठिनतम समय में— गतिस्त्वं, गतिस्त्वं त्वमेका भवानि!
—याज्ञवल्क्य—
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एक साल बीत चुका है, जब से देश मानवता के क्रूर शत्रु कोरोना विषाणु का सामना कर रहा है। तब से स्थितियां बहुत अधिक परिवर्तित हो चुकी हैं। देश के स्वनियोजित यानि हर दिन कमाकर खाने वाले लोग सरकारों के प्रत्येक निर्णय को उत्साह से स्वीकार कर रहे थे। सभी को भरोसा था कि महीने— दो— चार महीने में यह कठिन समय बीत जाएगा और जीवन सामान्य ढंग चलने लगेगा। तब किसी ने भी नहीं सोचा था कि हम ऐसी अंधेरी सुरंग में प्रवेश कर चुके हैं, जिसका दूसरा सिरा दिख ही नहीं रहा। हम अपने नेतृत्व की प्रत्येक बात पर भरोसा करते रहे और टीका बनने की प्रतीक्षा करते रहे। इसके बाद टीकाकरण भी प्रारंभ हो गया, किंतु कोरोना की विभीषिका बढती ही जा रही है। कोरोना संक्रमण के कारण देश में अब तक कुल 1,70,179 लोगों की मौत हो चुकी हैं। संक्रमण की चपेट में आने वालों की संख्या में आने वाली उछाल तो सभी को लगातार चौंका रही है। इस अवधि में रोजी— रोटी से हाथ धोने वाले परिवारों की संख्या करोडों में पहुंच चुकी है।
कोरोना को लेकर देशभर की स्थितियों को लेकर लगातार सूचनाएं आती रहती हैं। इन्हे देखकर भयभीत भी हूं और चिंतित भी। यह भयावह सूचनाएं बता रही हैं कि कहीं न कहीं प्रत्येक स्तर पर गंभीर चूक होती रही है और अभी भी हो रही है। देश के नेतृत्व की भावना की पवित्रता को लेकर कोई संदेह नहीं हैं। देश अपने नेतृत्व को स्वीकार भी करता है और सम्मान भी। विडंबना यह है कि केंद्र से जारी निर्देशों पर अमल का प्रतिशत बहुत कम है। हमारी सरकारें आत्मरति में लीन हैं। उनके इर्दगिर्द चाटुकारों की इतनी बडी फौज है कि धरातल से कोई सूचना पहुंच ही नहीं पाती। मध्यप्रदेश सरकार की तो बात ही निराली है। यह पंक्तियां मध्यप्रदेश के एक कंटेनमेंट जोन से लिखी जा रही हैं, जहां आज आठवें दिन तक संक्रमितों और अन्य नागरिकों की खैर— खबर लेने कोई अधिकारी तो दूर, चपरासी भी नहीं आया है। इससे प्रदेश की वास्तविक स्थिति को समझा जा सकता है। प्रदेश के अधिकारी सरकार की मंशा के अनुरूप कागजों का पेट भरने में लगे हैं और चापलूस मीडिया इन सभी को कोरोना योद्धा घोषित करने में। ऐसे में जनता की सुध कौन ले?
जब मनुष्य को कहीं से कोई सहारा नहीं दिखाई देता तो ईश्वर ही उसका सहारा होते हैं। देश में यही स्थिति बनी हुई है। आज से नवरात्रि महापर्व प्रारंभ हो गया है। मां जगदंबे करुणामयी हैं और शरण में गए की लाज रखती हैं। पूरे करुण भाव से प्रार्थना करता हूं कि हे मां, कठिन विपत्ति के जाल में उलझी अपनी संतति की रक्षा करो। देश और मानवता पर दया करो, माता। गतिस्त्वं, गतिस्त्वं त्वमेका भवानि!