मध्यप्रदेश में कोरोना का कहर, सरकार भी कुछ जिम्मेदारी निभाए

—शुभ चौपाल विशेष—
—याज्ञवल्क्य—
भोपाल। मध्यप्रदेश में कोरोना की विकरालता लगातार बढ रही है। यह अत्यधिक चिंताजनक इसलिए है कि प्रदेश के निवासी जानते हैं कि सरकारी चिकित्सा सुविधाएं प्रदेश के महानगरों, संभागीय मुख्यालयों और जिला मुख्यालयों तक ठीकठाक हैं, लेकिन इससे नीचे केवल कागजों पर ही हैं। इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि कोई भी नेता अथवा अधिकारी तहसील मुख्यालय अथवा इससे नीचे के किसी सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं कराता। गांवों में बसने वाले इस प्रदेश के गांवों में सरकारी इलाज की व्यवस्थाओं को तलाशने में ही उम्र बीत जाएगी।

जिस प्रदेश के गांवों में कोरोना का इलाज तो दूर, इंजेक्शन लगने की भी व्यवस्था भी न हो, उस प्रदेश के कमजोर आय वर्ग के लोगों को तो कोरोना के मामले में अतिसतर्क रहने की आवश्यकता है। हमारे पास इस बात के लिए संतोष करने के पर्याप्त कारण हैं कि प्रदेश के लोग इस महामारी के प्रति जागरुकता दिखा रहे हैं। लोग पहले जैसी लापरवाही से बच रहे हैं और अपना तथा अपने परिवार का यथासंभव बचाव कर रहे हैं।

अब ऐसे में सरकार की भूमिका की भी कुछ बात कर ली जाए। ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश सरकार के कोराना नियंत्रण के अधिकांश प्रयास मीडिया और सोशल मीडिया पर भी चल रहे हैं। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ प्रभुराम चौधरी के गृह जिले रायसेन के एक गांव में मंगलवार को बडी संख्या में लोग संक्रमित पाए गए। आनन— फानन में माइक्रो के स्थान पर लाइजर कंटेनमेंट जोन बना दिया गया। पहले दिन नायब तहसीलदार और एक सब इंस्पपेक्टर यह सब कराकर चले गए। आज सातवें दिन तक इस कंटेनमेंट जोन की किसी भी अधिकारी अथवा नेता ने सुध नहीं ली है। लोग दूध और दवाओं जैसे गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं। अब बात यही है कि कोरोना से शायद बच भी जाएं, लेकिन भूख से मरना तो तय ही है। ऐसे में लोगों के सामने क्या घरों से निकलने के अलावा भी कोई विकल्प होता है?

मध्यप्रदेश सरकार को चाहिए कि ऐसे कठिन समय में, जब जनता स्वयं अपनी रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है, कम से कम कंटेनमेंट जोन जैसे क्षेत्रों में अपनी थोडी— बहुत तो जिम्मेदारी निभाए। प्रदेश के ग्रामीणों को यह अहसास कराना जरूरी है कि प्रदेश में सरकार भी है, जो कभीकभार उसकी सुध भी ले लेती है।

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