राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर उभरी मढ़ई, व्यथा मढ़ई की नींव के पहले पत्थर और चितेरे— रेंजर आरके निगम की
—नीलम तिवारी—
सोहागपुर। नींव के पत्थर अक्सर नीव में ही दफन हो जाया करते हैं, यह हकीकत है। किंतु सच्चाई यह भी है कि इन्हीं पत्थरों पर मजबूत इमारत खड़ी रहती है। यही स्थिति आज मढ़ई की नींव के पहले चितेरे रेंजर राजेंद्र कुमार निगम की है जिन्होंने खुली आंखों से मढ़ई का सपना देखा था।
….पर इस मढ़ई का नहीं जो कली से फूल बनने से पहले मुरझा गई। उनका सपना यहां पर सुरक्षित वन्य प्राणी जीवन को बढ़ाना था, पर उसके विपरीत आज हालात यह है कि मढ़ई ही नहीं, समूचे सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान का अस्तित्व ही दांव पर लगा हुआ है। पर्यटन व्यवसाय इस कदर बड़ा है कि वन्य प्राणियों को दिन में ही नहीं नाइट सफारी के चलते रात में भी चैन नहीं है
और पर्यटकों की आमद तथा जिप्सियों की रेलम पेल ने तो हालात ही अलग बना दिये हैं ।
मढ़ई निगम के अंतर्मन की पुकार थी
मढ़ई की नींव रख कर यहां से सन 2000 में रुखसत हुए रेंजर निगम ने वर्षों बाद हुई चर्चा में बताया कि 94/95 में मैं पचमढ़ी के गेम रेंज मटकुली में पदस्थ था। सब पहाड़ों से उतर कर चूरना तक का दौरा होता था। उन दिनों वाइल्ड लाइफ चूरना में तो नजर आती थी पर मढ़ई में वैसे हालात नहीं थे। यहां नैसर्गिक संसाधन भरपूर थे, किंतु व्यवस्थित कुछ नहीं था, जिससे वन्य प्राणी जीवन बढ़ सके। उस दिन यहां पर बड़ी देर तक बैठा रहा और मुझे ऐसा लगा कि यह जगह मुझे बुला रही है। कोई आंतरिक शक्ति का ऐसा आकर्षण था कि मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपने उच्चाधिकारियों से यहां पदस्थ होने के लिए चर्चा की ताकि यहां वन्य प्राणी जीवन बढ़ा सकूं। आशा और अपेक्षा के अनुकूल मुझे उच्चाधिकारियों का सहयोग भी मिला और मैं यहां पदस्थ कर दिया गया ।
कहा जा सकता है कि मेरे अंतर्मन की आवाज ईश्वर द्वारा सुन ली गई।
फिर सिलसिला शुरू हुआ घास के मैदान बढ़ाने का और जल व्यवस्था आदि बनाने का। देखते ही देखते अगले 3 सालों में यहां पर वन्य प्राणी जीवन आबाद होने लगा। शाकाहारी चीतल हिरण सांभर बढ़ने के साथ बाघ तेंदुआ आदि मांसाहारी भी बढ़े। दुर्लभ वन्य प्राणियों के साथ-साथ प्रवासी पक्षियों का भी बड़ी संख्या में आगमन होने लगा और मढ़ई धीरे-धीरे वन्य प्राणियों की सुरक्षित और आदर्श रिहाइश गाह के रूप में विकसित होने लगी । चीतल हिरण सांभर भालू और दुर्लभ बायसन (जंगली भैंसा), एल्बिनो, नीलगाय आदि अन्यान्य वन्य प्राणी यहां सुरक्षित और स्वच्छंदता पूर्वक किल्लौल करते नजर आने लगी, मानो मेरा सपना पूरा होगा। इसके बाद यहां से सन 2000 में प्रमोशन के साथ स्थानांतरण हो गया।
जब मैं यहां आया था इक्का-दुक्का चीतल ही नजर आते थे पर धीरे धीरे यहां पर मेरे ही सामने भरपूर वन्य प्राणी जीवन विकसित हुआ। पर वर्तमान हालात दुखी कर रहे हैं। यहां पर संतुलन बनाए रखना चाहिए और जरूरी भी है, अन्यथा वन्य प्राणी जीवन को नष्ट होगा ही पर्यावरण की बुरी तरह प्रभावित होगा। कुल मिलाकर मढ़ई के पहले चितेरे रेंजर आर कि निगम को भी आज पर्यटन वन्य प्राणी जीवन निगलता नजर आ रहा है।
यही एहसास और अनुभूति यहां पर सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर रह चुके श्री डूंगरियाल को भी हो चुकी है, जो उनकी फेसबुक वॉल पर देखने को मिल जाती है।
कुल मिलाकर मढ़ई के वर्तमान हालातों से उसके पहले चितेरे रेंजर आरके निगम भी संतुष्ट नहीं। यही स्थिति यहां के वयोवृद्ध पर्यावरणवादी सैयद इलियास की भी है। उनका भी कहना है कि बेतरतीबी से बढ़ता पर्यटन वन्य प्राणी जीवन निगल जाएगा ।
जंगलों में होटल और रिसॉर्टो की भरमार हो चुकी है। नाइट सफारी के चलते चमचमाती सर्च लाइटों में वन्य प्राणी जीवन देखा और दिखाया जा रहा है। वन्य प्राणी अपने नैसर्गिक क्रिया प्रक्रिया में निश्चित ही बाधा महसूस कर रहे हैं, जिसका असर उनकी प्रजनन क्षमता और मानसिक स्थिति पर भी पड़ता है। यही कारण है कि अब वह शहरों की ओर भी मुखातिब और हमलावर तक हो चुके है। मजबूरी की घटना के बाद एक बाघिन को तो वनविहार पहुंचाया गया है। इसके अलावा भी कई उदाहरण समय-समय पर सामने आए हैं, जो वन्य प्राणियों के विचलन का प्रमाण हैं।
अर्थोपार्जन की दिशा में टूरिज्म लाभदायक उद्योग जरूर बन चुका है, पर यह वन्य प्राणियों और पर्यावरण के हित में नहीं कहा जा सकता। इसमें संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है। इसके लिए समाज, सरकार, शासन व्यवस्था, सबको सोचना— विचारना और करना भी पड़ेगा। अन्यथा कुछ दिन बाद ही ये वन्य प्राणी सोहागपुर में में भी घूमते नजर आने लगें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।