चमत्कारी संत बालक भगवान
—नीलम तिवारी—
सोहागपुर—होशंगाबाद। परमसत्ता संसार को मार्ग दिखाने के लिए अपनी शक्तियों से युक्त दिव्य विभूतियों को समय— समय पर पृथ्वी पर भेजती रही है। ऐसी ही एक अद्भुत विभूति छत्तीसगढ पीठाधाीश्वर संत बालक भगवान रहे हैं, जो सशरीर और अब अदृश्य शरीर से श्रद्धालुओं को अपने चमत्कारों से अभिभूत करते रहते हैं। उनका पुण्य स्मरण श्री, समृद्धि, मान— सम्मान, शक्ति, संपन्नता और मनचाहा सब कुछ सहज रूप से ही प्रदान कर देता है।
छतीसगढ तो बालक भगवान के चमत्कारों का साक्षी रहा ही है, मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले का यह प्राचीन नगर भी उनकी कृपा प्राप्त करता रहा है। बालक भगवान किसी भी व्यक्ति के श्रद्धापूर्वक स्मरण मात्र से वहां प्रकट होते रहे हैं। ऐसी सैकडों घटनाएं हैं, जो उन्हे स्थान, दूरी और समय से परे सिद्ध करती हैं। इन पंक्तियों के लेखक ने ऐसी अनेक घटनाएं उनके मुंह से सुनी हैं, जो उनकी कृपा के पात्र बने।
बालक भगवान का जन्म छत्तीसगढ के रायपुर की पुरानी बस्ती में हुआ था। उनका सांसारिक नाम पूर्णेन्द्र था। वे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के गुरुभाई रहे। मां दुर्गा के उपासक बालक भगवान ने छत्तीसगढ के स्वतंत्र अस्तित्व के लिए 1952 से आंदोलन किया। उन्होने छतीसगढ निर्माण के लिए अंचल के सभी स्थानों पर जाकर अलख जगाई। अपनी आध्यात्मिक शक्तियों के आधार पर उन्होने छत्तीसगढ गठन के पंद्रह वर्ष पूर्व ही इसकी घोषणा कर दी थी।
बालक भगवान के बारे में सैकडों लोग यह बताने वाले मिल जाते हैं कि उन्हे याद करो और वे आ जाते हैं। अष्ट सिद्धि और नौ सिद्धियां उन्हे प्राप्त थीं। सोहागपुर में 21 सितंबर 2004 को उनके एक भक्त ने उन्हे याद किया। अगले दिन वे सोहागपुर में थे। आज भी यह सचाई है कि उनकी याद उनके होने और कृपा का अहसास करा देती है। सोहागपुर में 22 सितंबर 2004 को उन्होने अजेरा पहुंचकर कुब्जा संगम को सरस्वती तीर्थ नाम दिया। यहां माता सरस्वती के मंदिर के निर्माण का आशीर्वाद देते हुए उन्होने भूमि पूजन भी किया। इस स्थान पर माता सरस्वती ने तपस्या की है।