सोना उगलती थी सतपुड़ा की नदियां, बेशकीमती पत्थर उगलते थे पहाड़

—नीलम तिवारी—
सोहागपुर । समूची नर्मदा घाटी और सतपुड़ा की वादियां अचरजो से भरी हुई हैं। सोहागपुर केसला ब्लॉक में बहती सुखतवा नदी से सोना छानकर लोग करोड़पति भी बन चुके हैं। यह जानकर लोगों को आश्चर्य हो सकता है
किंतु है यह हकीकत। इस संवाददाता ने कई स्रोतों से इस बात की पुष्टि की है।

कासदा के बाबूलाल धुर्वे की मां उन लोगों में से हैं, जिन्होंने इस नदी की रेत को सुखा और छानकर उसमें से सोना निकाला है। केसला के जंगलों में पुराना कासदा अब डूब में आ चुका है। बांध बनने से पूर्व पुराना कासदा और नीमखेड़ा कालाआखर, पीपलगोरा और बारहसेल के कुछ ही पुराने लोगों को इस बात की जानकारी थी। इस रहस्य को हर कोई नहीं जानता था। आज भी इन इलाकों के बचे खुचे वृद्ध लोग इस हकीकत की जानकारी दे सकते हैं ।

केसला के जंगलों की वर्षों खाक छान चुके पंडित राकेश दुबे ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए बताया कि पुराना कासदा निवासी 85 वर्षीय बाबूलाल धुर्वे भी इस हकीकत के जानकार हैं। इनकी मां पीले चमकीले स्वर्ण कणों से युक्त रेत को सुखाकर और छानकर सोना निकालने वालों में से एक थी ।

बहरहाल सोने के कण इस नदी में आते कहां से थे और इससे कौन-कौन और कितना लाभान्वित हुआ है यह भी खोजपूर्ण तथ्य हैं। वर्तमान में यह क्षेत्र प्रूफ रेंज में आ चुका है। बताते हैं कि प्रूफ रेंज में गोले भी इसी दिशा में गिरते हैं, जिस से निकला पीतल तांबा आदि यहां के लोग आमतौर से जान जोखिम में डालकर भी बटोरते थे। इसमें भी न जाने कितने लोगों की जाने गई और कितने अपंग हो गए ।

फिलहाल सोना उगलने वाली नदी के रूप में सुख तवा नदी आज भी चर्चा में है। भले ही पुराना कासदा अब डूब में आ गया हो, पर नीमखेड़ा और काला आखर के लोग इस हकीकत से अनजान नहीं हैं। नर्मदा घाटी और सतपुड़ा की वादियां इसी तरह अपने आप में न जाने कितने रहस्य समेटे हुए हैं।

सोहागपुर के पास लांघा में गुजरात से आने वाला छोटे लाल कंकड़ो का एक व्यापारी गुप्ता यहां से ट्रकों से नदियों से बीन बीन के लाल पत्थर गुजरात ले जाता था। उसे भी यहां के पहाड़ों में हकीक और पुखराज जैसे बेशकीमती पत्थर मिले हैं और जिसे उसने लांघा वाले जमील भाई के यहां बताया भी था। यहां दरगाह पर आने वाले कुछ जौहरियो ने इस हकीकत की पुष्टि भी की है जिसके साक्षी सोहागपुर के मोहम्मद रफीक भी रहे हैं। गुप्ता यहां की पहाड़ी नदियों से छोटे छोटे लाल रेतीले पत्थर बिनवा कर गुजरात ले जाता था, जो गुजराती लोग अपने घर मकान में चिनवाते हैं।

इसी तरह नर्मदा के दूसरी ओर यानि विंध्याचल पर्वतमाला में बरेली— बाडी— देवरी के आसपास भी पिछले वर्षों में कुछ ऐसे शैलचित्र मिले हैं, जो एलियंस के भी यहां आने की पुष्टि भी करते प्रतीत होते हैं। यहां नर्मदा किनारे डायनासौर के जीवश्म भी मिल चुके हैं। नर्मदा घाटी की सभ्यता पर कई सालों से काम कर रहे डॉ कुंवर वजाहत शाह कहते हैं कि नर्मदा घाटी अपने आंचल में अनेक रहस्य छिपाए हुए है। अभी तक मिले प्रमाण इसे विश्व की श्रेष्ठतम सभ्यताओं में शामिल करते हैं। सेवानिवृत्त प्राचार्य पंडित पुरुषोत्तम नारायण याज्ञवल्क्य इस क्षेत्र में आधिकारिक स्तर पर पुरा अवशेषों पर काम की आवश्यकता जताते हैं। बहरहाल, आवश्यकता ऐसे अचरजो की खोज और तथ्यों के अन्वेषण की भी है ।

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