बॉम्बे हाईकोर्ट ने मीडिया ट्रायल पर जताई चिंता, 23 अक्टूबर को भी जनहित याचिकाओं पर जारी रहेगी सुनवाई
मुबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को सुशांत सिंह राजपूत की मौत से संबंधित रिपोर्ट पर विनियम की मांग करते हुए दायर याचिकाओं पर सुनवाई की और मीडिया ट्रायल पर अपनी चिंता जताई। इन जनहित याचिकाओं पर 23 अक्टूबर को भी सुनवाई जारी रहेगी।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की खंडपीठ ने रिपब्लिक टीवी की तरफ से पेश अधिवक्ता मालविका त्रिवेदी से कहा कि यदि आप जांचकर्ता, अभियोजक और न्यायाधीश बन गए हैं, तो हमारा क्या उपयोग है? हम यहां क्यों हैं? पीठ ने अधिवक्ता त्रिवेदी से कहा कि अगर आपको सच्चाई जानने में इतनी दिलचस्पी है, तो आपको सीआरपीसी पर ध्यान देना चाहिए। कानून की अनदेखी कोई बहाना नहीं है। वकील का तर्क था कि चैनल खोजी पत्रकारिता कर रहा था और जांच के दोषों की ओर इशारा कर रहा था। अधिवक्ता त्रिवेदी ने प्रस्तुत किया कि अदालत यह नहीं कह सकती है कि मीडिया को जांच के दोषों की तरफ इंगित नहीं करना चाहिए और सत्य को रिपोर्ट नहीं करना चाहिए। इस पर पीठ ने कहा कि वो यह सुझाव नहीं दे रहे हैं कि मीडिया का गला दबा दिया जाना चाहिए। वह सिर्फ प्रोग्राम कोड के अनुपालन के बारे में चिंतित हैं। कोर्ट ने कहा कि हम केवल इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या प्रोग्राम कोड का उल्लंघन किया गया है या नहीं और आपकी रिपोर्टिंग निर्धारित मानदंडों में से किसी का उल्लंघन करती है या नहीं। हम केवल यह कह रहे हैं कि आपको अपनी सीमाओं को जानना चाहिए और अपनी सीमाओं के भीतर, आपको सब कुछ करने की अनुमति है। परंतु उनको क्रॉस-ओवर न करें। पीठ ने रिपब्लिक टीवी की वकील से यह भी पूछा कि किसी मामले में जनता से यह पूछना कि किसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए, क्या यह खोजी पत्रकारिता का हिस्सा है? यह बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद ट्विटर पर चैनल द्वारा चलाए जा रहे हैशटैग अभियान #ArrestRhea के संदर्भ में पूछा गया था। पीठ ने यह भी पूछा कि जब एक मामले की जांच चल रही है और मुद्दा यह है कि यह एक मानव हत्या है या आत्महत्या है और एक चैनल कह रहा है कि यह हत्या है, तो क्या यह खोजी पत्रकारिता है? पीठ ने सुशांत की मौत की रिपोर्ट के तरीके पर भी अपनी अस्वीकृति व्यक्त की। पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आत्महत्या की रिपोर्टिंग के कुछ दिशानिर्देश हैं। कोई सनसनीखेज सुर्खियां नहीं बनाई जानी चाहिए। क्या आपके पास मृतकों के लिए कोई सम्मान नहीं है? यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। टाइम्स नाउ की ओर से पेश वकील कुणाल टंडन ने पीठ से आग्रह किया कि वह सहारा मामले के फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मीडिया के लिए तय किए गए ‘स्व-नियमन’ मॉडल में हस्तक्षेप न करें। वकील टंडन ने कहा
कि अंततः कुछ मुद्दों के संबंध में एक लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए क्योंकि- लोकप्रिय विचार भी हो सकते हैं, अलोकप्रिय विचार भी हो सकते हैं। एक समाचार रिपोर्ट को पूरा पढ़ा जाना चाहिए और एक उदार व्यक्ति इसे पूरी तरह से ही समझेगा। कोर्ट ने आजतक, इंडिया टीवी, जी न्यूज और एबीपी न्यूज के वकीलों को भी सुना। जब जी न्यूज के वकील ने पीठ को बताया कि व्यथित या दुखी व्यक्ति के लिए निवारण तंत्र उपलब्ध हैं, तो अदालत ने कहा कि इस तरह के उपाय, चाहे वह स्व-नियामक निकाय हो, सरकार हो या अदालत हो, इन सभी के पास जाने का विकल्प तभी मिलता है,जब नुकसान हो चुका होता है। पीठ ने कहा कि क्षति होने के बाद ही ये सभी पहलू उपलब्ध होते हैं। लेकिन क्षति होने के बाद किसी व्यक्ति को न्याय कैसे मिलेगा? गाँव या दूरस्थ स्थान के किसी व्यक्ति को कैसे न्याय मिलेगा? न्यायालय 23 अक्टूबर को इन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखेगा।