मध्यप्रदेश— नगरीय निकाय के लिए 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता आरक्षण— मप्र उच्च न्यायालय

जबलपुर। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि नगरीय निकाय चुनाव के लिए किसी भी स्थिति में ओबीसी, एससी, एसटी को मिलाकर कुल 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं हो सकता।

मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने स्पष्ट किया कि 50 फीसदी का यह बंधन सिर्फ संविधान की पांचवीं अनुसूची में वर्णित आदिवासी क्षेत्रों की पंचायतों के लिए तोड़ा जा सकता है। लेकिन सामान्य क्षेत्र के नगरीय निकायों के लिए यह बंधन तोड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

धनपुरी शहडोल निवासी मोहम्मद आजाद की ओर से याचिका दायर कर कहा गया कि सुको के निर्देश व संविधान की मंशा के अनुसार नगरीय निकाय चुनावों के लिए आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक नही हो सकती। लेकिन 10 दिसम्बर 2020 को एक नोटिफिकेशन जारी कर धनपुरी नगर परिषद के तीन वार्ड एससी, पांच वार्ड एसटी व सात वार्ड ओबीसी के लिए आरक्षित कर दिए गए। जबकि नगर परिषद में कुल 28 वार्ड हैं। नियमों के अनुसार 14 से अधिक वार्ड आरक्षित नहीं किए जा सकते। सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न् न्यायदृष्टांतों का हवाला दिया गया। आग्रह किया गया कि नियमविरुद्ध किये गए वार्ड आरक्षण का नोटिफिकेशन निरस्त कर फिर से विधिवत तरीके से वार्ड आरक्षण किया जाए।

अंतिम सुनवाई के बाद कोर्ट ने उक्त नोटिफिकेशन को असंवैधानिक पाकर निरस्त कर दिया। कोर्ट ने निर्देश दिए कि केंद्र सरकार के 29 अगस्त 2019 को जारी दिशानिर्देश का पालन करते हुए सात की जगह छह वार्ड ओबीसी के लिए आरक्षित करते हुए पूरी आरक्षण प्रक्रिया फिर से पूरी की जाए। इसके लिए कोर्ट ने 15 दिनों का समय दिया। राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता पुष्पेंद्र यादव व चुनाव आयोग की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ सेठ उपस्थित हुए।

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