कुछ आपबीती-कुछ जगबीती(18)
कामना रहित प्रेम— याज्ञवल्क्य
प्रेम मनुष्य का जन्मजात गुण है। मनुष्य के जन्म के जो महत्वपूर्ण कारक होते हैं, उनमें प्रेम भी प्रमुख है। इसके साथ ही प्रतिफल की अपेक्षा और कामना भी स्वाभाविक होते हैं। मैने कई बार प्रेम को विस्तार की बात कही है। कह वही पाता हूं, जिसे जी रहा होता हूं। अब इससे कुछ और आगे की बात करते हैं।
हम जब किसी के प्रति प्रेमपूर्ण होते हैं तो मन में कई कामनाएं भी होती हैं। यद्यपि कामना और प्रतिफल अलग— अलग हैं, लेकिन प्रेम के संदर्भ में दोनो में घालमेल— सा हो जाता है। कई बार किसी पर एकाधिकार की भावना, कई बार कई अपेक्षाएं और प्रेम के बदले प्रेम की चाह तो सामान्यत: होती ही है। जीवन में कई लोगों से प्रेम किया है और अब और अधिक लोगों के प्रति प्रेमपूर्ण होता जा रहा हूं। लेकिन कई बार सोचता हूं कि जिनके प्रति प्रेमपूर्ण होता हूं, कहीं न कहीं कुछ कामना भी मन में आ ही जाती है। गंभीरता से इस बात पर विचार किया और कई प्रसंगों पर ध्यान दिया तो लगा कि यह प्रेम कहीं स्वार्थ जैसा हो रहा होता है। निष्कर्ष यह निकला कि प्रेम को विस्तार दें यह तो ठीक है, लेकिन कामना रहित प्रेम करना भी सीखें। अब इसी रास्ते पर बढ रहा हूं।
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