—शुभ चौपाल— संपादकीय— इन पत्रकारों पर भी ध्यान हो

पत्रकार कई श्रेणी के होते हैं। यह श्रेणियां संस्थान और कार्यक्षेत्र के आधार पर बनी हैं। स्वाभाविक रूप से बडे संस्थानों और राष्ट्रीय राजधानी तथा महानगरों में कार्यरत पत्रकार जाने— माने चेहरे होते हैं। इनसे संबंधित मामलों में सरकार, विपक्ष और जनता का भी प्रभावशाली वर्ग संवेदनशील बना रहता है। किसी भी संकट के समय इन्हे पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध हो जाती है तथा कोई कानूनी संकट आ जाता है तो देश की सर्वोच्च अदालत तक इनके सुयोग्य पैरवीकार खडे हो जाते हैं। यह पत्रकारों का वह वर्ग है, जो प्रत्येक दृष्टि से प्रभावशाली होता है। प्रदेश की राजधानियों में भी इसी श्रेणी के कुछ पत्रकार होते हैं। इनका प्रदेश की राजनीति और प्रशासन पर अच्छा प्रभाव होता है। आवश्यकता होने पर इन्हे भी प्रदेश में सभी सुविधाएं उपपलब्ध हो जाती हैं। ऐसे पत्रकारों की संख्या बहुत कम है, यह सभी को पता है।

अब हम बात करते हैं पत्रकारों की उस श्रेणी की जो बहुत अधिक संख्या में है तथा सर्वाधिक खतरों के बीच सर्वाधिक असुरक्षित और असंरक्षित हैं। ये पत्रकार देशभर में हैं। इस श्रेणी के पत्रकार छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में कार्यरत हैं। इन्हे पत्रकारों को मिलने वाली सुविधाएं इसलिए नहीं मिलतीं क्योंकि ये इस संबंध में निर्धारित औपचारिकताओं को पूरा नहीं कर पाते। कुछ लोगों को शायद यह जानना आश्चर्यजनक लग सकता है कि सरकार की नीतियां ऐसी हैं कि पत्रकारों को मिलने वाले लाभ बडे संस्थानों को बहुत अधिक मिलते हैं और छोटे अखबार कठोर औपचारिकताओं के फेर में वंचित बने रहते हैं। इस श्रेणी के पत्रकारों को सरकारी अधिमान्यता मिलना भी आसान नहीं होता। अनुभव बताता है कि देश और प्रदेश की राजधानी में रहकर किसी के भी विरोध में लिखना अधिक खतरा उत्पन्न नहीं करता। यहां आपके समर्थन में बहुत अधिक लोग आ जाते हैं। जिला मुख्यालय पर भी बहुत अधिक खतरा नहीं होता। लेकिन कस्बों और गांवों में पत्रकारिता सर्वाधिक जोखिमभरी होती है। यहां प्रकारान्तर से सामंतशाही अभी भी प्रभावी है। नेताओं, अधिकारियों, ठेकेदारों और अपराधियों के बीच ऐसे गठबंधन हैं कि इनमें से किसी के भी खिलाफ लिखने वाला पत्रकार गंभीर संकट में फंस जाता है। यहां न तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार होते और न ही पत्रकारिता के पक्ष में खडे हो जाने वाले संगठन। सर्वाधिक खतरों के बीच काम कर रहे इन पत्रकारों की ओर भी सरकार और समाज का ध्यान हो। यदि आपके आसपपास लोकहितैषी पत्रकारिता करने वाले पत्रकार काम कर रहे हों तो उन्हे सुरक्षित और संरक्षित करना हमारा नैतिक दायित्व भी है।
—शुभ चौपाल—
वर्ष—3, अंक—28

    – याज्ञवल्क्य
(स. ना. याज्ञवल्क्य)
      संपादक

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