द्वापर जैसे योग— नक्षत्र और वार; गूंज रही बाल गोपाल की जय-जयकार
Krishna Janmashtami 2024: कन्हैया के रंग में रंगता जा रहा मध्यप्रदेश: जानें कहां है श्रीकृष्ण की ससुराल: जामवंत जी कैसे कर बैठे भगवान से युद्ध
भोपाल। आज सोमवार की सुबह से ही मध्यप्रदेश के श्रीकृष्ण मदिरों में अनोखी छटा दिखाई दे रही है। माधव का मनोहारी श्रृंगार किया जा रहा है और हर जगह कान्हा के भजन गूंज रहे हैं।
मध्यप्रदेश की पावन धरा का भगवान श्री कृष्ण का अत्यन्त निकट का संबंध रहा है। एक ओर जहां उन्होने उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में शिक्षा ग्रहण की, वहीं महायोद्धा जामवंत (Jamvant) से युद्ध भी श्रीकृष्ण ने विंध्याचल पर्वत माला और मां नर्मदा के पवित्र अंचल जामगढ में लडा है।
कौन थे जामवंत?
अत्यंत बलशाली और बुद्धिमान जामवंत को रिक्षराज कहा जाता है। जामवंत वानरराज सुग्रीव के साथ श्रीराम की सेना का हिस्सा रहे। जामवंत यह जानते थे कि हनुमानजी कौन हैं और कितने सक्षम हैं। जामवंत स्वयं भी दीर्घायु थे, जो सतयुग-त्रेता और द्वापर तीन महा युगों तक जीवित रहे। द्वापर में उन्होंने श्रीकृष्ण से वर्तमान मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के प्रसिद्ध पौराणिक और पुरातात्विक स्थल जामगढ में युद्ध लडा था।
रामायण काल में जामवंत
वाल्मीकि रामायण में जामवंत के बल-बुद्धि और पुरुषार्थ पर चौपाइयां हैं। उसी तरह श्रीकृष्ण की लीलाओं को दर्शाने वाले धर्म-ग्रंथ ‘प्रेम सागर’ में भी जामवंत जी का प्रसंग है। जामवंत को जाम्बवंत, जामुवन (Jambavan), जामवंता, जाम्बावान, सम्बुवन आदि नामों से भी जाना गया। युग विभाजन की दृष्टि से रामायण काल त्रेता युग में आया, तब तक जामवंत वृद्ध हो चुके थे। उनमें इतना सामर्थ्य नहीं बचा था, जितना युवावस्था में था। यह बात उन्होंने स्वयं कही।
जब लाखों वानर-भालू मां सीता की खोज में विभिन्न दिशाओं में भेजे गए, तब दक्षिण दिशा वाले दल में जामवंत भी हनुमान, अंगद, नल व नील के साथ थे। जहां जामवंत ने ही हनुमान जी को उनकी शक्ति-सामर्थ्य की याद दिलाई। युद्ध में रावण के अनेकों राक्षस भी मारे।
महाभारत काल में जामवंत
त्रेतायुग के रामायण काल में श्रीरामजी की विजय गाथा से हम परिचित ही हैं। उसके बाद अगले युग यानि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए। तब स्यमंतक मणि को लेकर जामवंत की श्रीकृष्ण से ठन गई। दोनों में 27 दिन तक जामगढ की जामवंत गुफा ( Jamvant Cave In Jamgarh) में युद्ध चलता रहा। जामवंत अपने जीवन में केवल कृष्ण से ही हारे, तब उन्हें भरोसा हुआ कि वह भगवान (राम) हैं। उसके बाद जामवंत ने अपनी पुत्री जामवंती का श्रीकृष्ण से विवाह कराया। इस तरह इस क्षेत्र को भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल बनाने का सौभाग्य जामवंत जी ने दिया।
भगवान से कैसे कर बैठे जामवंत युद्ध?
जामवंत जी प्रभु श्री राम के परम भक्त थे और उनके हृदय में श्री राम के लिए अपार स्नेह था लेकिन द्वापर युग के दौरान जामवंत जी से एक भारी भूल हो गई और अनजाने में वह प्रभु श्री राम के ही रूप श्री कृष्ण से युद्ध कर बैठे। शास्त्रों में वर्णित चित्रण के अनुसार, जामवंत जी अपार बल के स्वामी थे। रावण और श्री राम के युद्ध के दौरान जामवंत जी अकेले ही 100 योद्धाओं को परास्त कर दिया करते थे। जब युद्ध समाप्त हुआ तो जामवंत जी ने अहंकार के अधीन होकर प्रभु श्री राम के सामने अपने बल का बखान करना शुरू कर दिया। प्रभु श्री राम उनके मन में पनप रहे घमंड को फौरन भांप गए और उनके इसी घमंड को दूर करने के लिए श्री राम ने उन्हें यह आश्वासन दिया कि वह द्वापरयुग में श्री कृष्ण अवतार लेकर आयेंगे और उनसे युद्ध करेंगे।
भगवान ने निभाया वचन
अपने वचन अनुसार श्री राम द्वापरयुग में जामवंत से मिले और उन्होंने उनसे युद्ध भी किया। हुआ यूं कि श्री कृष्ण पर स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप लगा था जिसके बाद खुद को निर्दोष साबित करने के लिए श्री कृष्ण नर्मदा और विंध्याचल पर्वतमाला के बीच एक गुफा में पहुंचे जहां जामवंत जी अपनी पुत्री के साथ रहते थे। जामवंत जी के पास वह मणि थी जिसे श्री कृष्ण खोज रहे थे। श्री कृष्ण को अपने निवास स्थल पर आता देख जामवंत जी आग बबूला हो गए और उन्होंने श्री कृष्ण से युद्ध आरंभ कर दिया। जब जामवंत जी को इस बात का आभास हुआ कि वह जिससे युद्ध कर रहे हैं वो कोई साधारण मनुष्य नहीं तो उन्होंने युद्ध पर विराम लगाते हुए श्री कृष्ण से अपने असल रूप में आने को कहा जिसके बाद श्री कृष ने उन्हें अपने राम अवतार में दर्शन दिए। अपने प्रभु श्री राम को देख जामवंत जी अत्यंत भावुक हो उठे।
श्री कृष्ण का हुआ जामवंती से विवाह
अपनी भूल की क्षमा याचना करते हुए जामवंत जी ने श्री कृष्ण के समक्ष अपनी पुत्री जामवंती से विवाह का प्रस्ताव रखा जिसके बाद श्री कृष्ण ने जामवंती जी को अपनी पत्नी स्वीकार किया। इस तरह जामवंत जी ने क्षमा भी मांग ली, अपनी पुत्री का श्री कृष्ण से विवाह भी कर दिया और श्री कृष्ण को मणि भी लौटा दी।
(सामग्री संकलन— पंडित (स्व) पुरुषोत्तम नारायण याज्ञवल्क्य, कमल याज्ञवल्क्य के संग्रह से)