बेबस किसान— मूंग के साथ ही खाद के लिए भी परेशान
Raisen गिरोहों के आगे बेबस प्रशासन— छह: शर्म भी और गुस्सा भी
—याज्ञवल्क्य
(बरेली कार्यालय)
बरेली/रायसेन। हमारे नेतागण किसानो को अन्नदाता संबोधन देते हैं। रायसेन और मंडीदीप को को छोडकर शेष रायसेन जिला पूरी तरह खेती पर निर्भर है। अच्छी फसल का मतलब सभी व्यवसायों में रौनक और किसान परेशान तो सभी परेशान। यही बात मजदूरों पर भी लागू होती है क्योंकि यहां खेतिहर मजदूर सबसे अधिक हैं। बीते समय से अन्नदाता के दर्द से निकटता से जुडा हुआ हूं। किसान की दुर्दशा देखकर कभी शर्म आती है तो कभी खून गर्म हो जाता है। बता दूं कि प्रतिदिन 25 से 50 किसानो के दर्द को सुनता हूं। इसके अलावा महान लोकतंत्र के हम निरीह नागरिक कर ही क्या सकते हैं?
मूंग बेचने और खाद खरीदने के लिए परेशान किसान
मूंग की तुलाई अधिकांश किसान सेवा—शुल्क देकर करा चुके हैं। जो ये नहीं कर पाए, उन्होने गिरोह से दूसरे तरह के सौदे करके अपनी मूंग तुला दी है। मूंग तुलाने वाले वे किसान अभी भी परेशान हैं, जिन्होने उपार्जन केंद्रों के कर्ताधर्ताओं को उनके द्वारा चाही गई रकम भेंट नहीं की।
इसके साथ ही खाद यानि यूरिया और डीएपी की किसानो को जरूरत है। प्रतिदिन देखता हूं कि बरसते पानी में वे खाद के लिए दिनभर जूझ रहे होते हैं। निर्धारित कीमत चुकाने के बाद भी उनका संघर्ष उनके सब्र को दिखा रहा होता है। यह अलग बात है कि मूंग की तरह अतिरिक्त शुल्क् चुकाने वालों को कोई दिक्कत नहीं है। उन्हे तो रात—बिरात सबकुछ मिल रहा है।
यह व्यवस्था की नाकामी नहीं तो क्या है?
मूंग उपार्जन को कई साल हो गए। इसी तरह खाद का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होता रहा। प्रशासन और सहकारिता विभाग के पास पुराने आंकडे हैं। केवल कमाई करने वाले गिरोहों से अवैध गठबंधन न होते तो व्यवस्था एक दिन में बहुुुुत कुछ सुधारी जा सकती थी। अन्नदाता की ऐसी दुर्दशा वहां हो रही है, जहां किसानो के लाडले शिवराज सिंह चौहान केंद्र में कृषि मंत्री हैं और बरेली के किसान आंदोलन के माध्यम से हजारों किसानो से निकटता से जुडे किसान नेता दर्शन सिंह चौधरी सांसद हैं। मुझे लगता है इस स्थिति में हमे शर्म भी आनी चाहिए और खून भी खौलना चाहिए।
(क्रमश: जारी…)
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