कहीं भी, कभी भी प्रदर्शन करने का अधिकार नहीं

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि प्रदर्शन करने का अधिकार कहीं भी और कभी भी नहीं हो सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने पिछले साल पारित अपने आदेश की समीक्षा की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। बीते साल एक फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक रास्ते पर कब्जा जमाना स्वीकार्य नहीं है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कुछ अचानक प्रदर्शन हो सकते हैं लेकिन लंबे समय तक असहमति या प्रदर्शन के लिए सार्वजनिक स्थानों पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता है, जिससे दूसरे लोगों के अधिकार प्रभावित हों। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, अनिरूद्ध बोस और कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा, ”हमने समीक्षा याचिका और सिविल अपील पर गौर किया है और आश्वस्त हैं कि जिस आदेश की समीक्षा करने की मांग की गई है, उसमें पुनर्विचार किए जाने की जरूरत नहीं है।”

पीठ ने हाल में फैसला पारित करते हुए कहा कि पीठ ने पहले के न्यायिक फैसलों पर विचार किया और गौर किया कि प्रदर्शन करना और असहमति व्यक्त करने का संवैधानिक अधिकार है लेकिन उसमें कुछ कर्तव्य भी हैं। पीठ ने शाहीन बाग निवासी कनीज फातिमा और अन्य की याचिका को खारिज करते हुए कहा, ”प्रदर्शन करने का अधिकार कहीं भी और कभी भी नहीं हो सकता है। कुछ अचानक प्रदर्शन हो सकते हैं लेकिन लंबी समय तक असहमति या प्रदर्शन के मामले में सार्वजनिक स्थानों पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता है जिससे दूसरों के अधिकार प्रभावित हों।

याचिका में पिछले साल सात अक्टूबर के फैसले की समीक्षा करने की मांग की गई थी। उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई न्यायाधीश के चैंबर में की और मामले की खुली अदालत में सुनवाई करने का आग्रह भी ठुकरा दिया। उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल सात अक्टूबर को फैसला दिया था कि सार्वजनिक स्थलों पर अनिश्चित काल तक कब्जा नहीं जमाए रखा जा सकता है और असहमति के लिए प्रदर्शन निर्धारित स्थलों पर किया जाए। इस फैसले में कहा गया था कि शाहीन बाग इलाके में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन में सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा स्वीकार्य नहीं है।

 

 

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