लिखीं चंद सतरें…—याज्ञवल्क्य
मोहब्बत भरा दिल लेकर हैं चलते।
जहां मर्जी हो, तुम वहां लूट लेना।
अगर कोई शिकवा—शिकायत है हमसे
मनाने की हद तक, तुम रूठ लेना।
कभी वक्त दे पाया हमको न मोहलत
सजाएं— संवारें, पन्ने उमर के।
थी कालिख, नमी थी, लिखीं चंद सतरें
मन सच कहे या समझ झूठ लेना।
—याज्ञवल्क्य
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