विशेष संपादकीय— भीडतंत्र और बहुमततंत्र से सुरक्षित रहे गणतंत्र

हमारे गौरवशाली भारत का गणतंत्र विश्व के महानतम गणतंत्रों में गिना जाता है। शासन व्यवस्था में गण यानि जनता को महत्व देना हमारे देश की महान परंपरा रही है। प्राचीन ग्रंथों में ऐसे अनेक प्रसंग हैं, जब राज्यसत्ता को किसी सामान्य व्यक्ति को न्याय देने के लिए झुकना पडा है। प्राचीनकाल में भले ही राज्यसत्ता का निर्वाचन न होता हो, लेकिन चयन तो होता ही था। इस चयन में निश्चित रूप से नैतिक मापदण्ड महत्वपूर्ण होते थे। धर्मराज और राजधर्म प्रचलित शब्द रहे हैं। राजधर्म में सम् भाव प्रमुख होता था।

महान परंपराओं के हमारे देश में गणतंत्र निरन्तर विकसित होता रहा है और देश को विकसित करता रहा है। गणतंत्र की इस यात्रा में कई बार परीक्षा की घडिया भी आईं, किंतु प्रत्येक परीक्षा में गणतंत्र ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है। बीते समय की देश में गणतंत्र की यात्रा पर ध्यान दें तो दो संकट रूप बदलकर सामने आए हैं। कई बार कई स्थानों पर हमने पाया कि गणतंत्र की भावना पर भीडतंत्र भारी सिद्ध हुआ है। इसी प्रकार कई बार गणतंत्र को बहुमततंत्र के रूप में काम करते हुए हमने देखा है।

गणतंत्र के आधार स्तंभों के कई बार संदेह के दायरे में आने की बात हम करते रहे हैं। हमारी गणतांत्रिक संस्थाओं की पवित्रता कायम रहनी चाहिए ताकि इन पर जनसाधारण का भरोसा बना रहे। गणतंत्र के सभी स्तंभों को अपने दायित्व बोध के साथ काम करना चाहिए। गणतांत्रिक व्यवस्था में जनता सर्वोपरि होती है। ऐसे में जनता पर बहुत बडा दायित्व होता है। जनता की जागरुकता में लोकतंत्र की आत्मा बसती है। यदि नागरिक अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत नहीं रहते तो गणतंत्र के आधार स्तंभ गडबडा जाते हैं। भीडतंत्र और बहुमततंत्र से हमारा गणतंत्र सुरक्षित रहे, इसके लिए हम सभी नागरिकों को अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सदैव सजग रहना होगा।
याज्ञवल्क्य
—स.ना. याज्ञवल्क्य—
  संपादक
—शुभ चौपाल— वर्ष—3,अंक—25 से—

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