जिंदगी संघर्ष है—
- याज्ञवल्क्य
जिंदगी संघर्ष है
इससे नहीं इंकार।
किंतु हमने हर चुनौती को
किया स्वीकार।
आदमी हैं, देवता बनने की
जिद पाली नहीं है।
भाग्य ने अकसर कहा
वह हमे खाली नहीं है।
फर्ज मुझसे कह रहे
अभी सो सकते नहीं।
सफर कितना ही कठिन हो
अभी रुक सकते नहीं।
लडखडाते पांव पर
चलना रहा मंजूर।
मंजिलों से पूछते हैं
कब तलक हो दूर?
आंखों में सपने पले
लेकिन नमी छूती रही।
हर शिकायत लाजिमी है
कान में कहती रही।
एक बेचैनी रहा करती
हमेशा साथ।
टोकती रहती है वह
टूटे बहुत विश्वास।
सवालों का बोझ सिर पर
किसी से क्या कुछ कहें।
बस यही जायज लगा
चुप रहें, बस चुप रहें।
स्वयं को माना नहीं
हमने कभी मजबूर।
काम कितन ही बढा हो
कब थका मजदूर?
गिरे-हारे-थके
यह सब कुछ किया मंजूर।
कोई भी चाहे तो कह दे
थे नशे में चूर।
संत तो क्या खाक बनते
पर तपी हर सांस।
अंधेरों के बीच रहती
उजाले की आस।
बहुत ताकत दिया करता
बस जरा-सा प्यार।
नहीं काबिल, फिर भी
कर सकते हो यह उपकार।
जिंदगी संघर्ष है
इससे नहीं इंकार।
किंतु हमने हर चुनौती को
किया स्वीकार।
-याज्ञवल्क्य