केवल आंदोलन नहीं, किसानों के लिए जीवन- मरण का प्रश्न
-चौधरी भूपेंद्र सिंह-
पलवल। देश के कुछ लोग किसान आंदोलन को दूसरे आंदोलनों की तरह समझने की भूल कर सकते हैं, लेकिन दिल्ली की सीमाओं पर कृषि कानूनों की वापसी के लिए डटे किसानों के बीच रहकर यह भ्रम कतई नहीं रहता। कानून- व्यवस्था का पूरी तरह सम्मान कर रहे किसानों के लिए यह महज आंदोलन नहीं, बल्कि जीवन- मरण का प्रश्न है। बीते चौबीस घंटे आंदोलनरत अन्नदाताओं के बीच गुजारते हुए यह बात साफ समझ में आ चुकी है।
समाचार माध्यमों से मिलने वाली सूचनाओं के विपरीत यहां हर किसान कानून वापसी तक किसी भी हद तक जाने पर संकल्पित दिखता है। भूमिपुत्र सीमाओं पर पूरी शालीनता, लेकिन जिद के साथ अडे दिखाई दे रहे हैं। यदि समर्थन की बात करें तो लोगों ने आंदोलन स्थलों को उन जनवासों की तरह बना दिया है, जहां बारात रोकी जाती है और बारातियों की सेवा में लोग तत्पर रहते हैं। बडी संख्या में लोग आंदोलनकारियों के साथ ही यहां आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की सुविधा के लिए सेवा करते दिखाई देते हैं। यदि किसान नए कृषि कानूनों को अपनी भावी पीढियों के लिए भी घातक मान रहे हैं तो लोग अन्नदाताओं के आंदोलन में हर संभव सहयोग के लिए आमादा हैं।
निरंतर……..