—शुभ चौपाल—संपादकीय— किसान आंदोलन— आखिर कब तक?
दिल्ली की सीमाओं पर और देश के अन्य हिस्सों में चल रहे किसान आंदोलन को लगभग दो महीने हो रहे हैं। इस बीच केंद्र सरकार और किसानो के बीच हुई कई दौर की बाातचीत से कोई परिणााम नहीं निकला है। गतिरोध तोडने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत ने भी न्यायिक सीमाओं के भीतर रहकर पहल की, लेकिन उससे भी अधिक उम्मीद नहीं दिखाई दी। जब कोई मुद्दा अधिक लंबा खिंचता है तो उसमें कई तरह के लोग जुडते जाते हैं। उनके उद्देश्यों के बारे में अधिक भरोसे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। किसान आंदोलन भी असामान्य समय सीमा में प्रवेश कर चुका है और स्वाभविक रूप से इसका समाधान पहले की तुलना में और अधिक मुश्किल होता जा रहा है। देशभर में यह चिंता है कि किसान आंदोलन आखिर कब तक चलता रहेगा? हम पहले से ही आगाह करते रहे हैं कि कितना अच्छा होता यदि किसानी से संबंधित कानूनों पर पहले से व्यापक चर्चा और संवाद होता। जो कुछ सरकार ने आंदोलन के बाद कहा और किया है, यदि यह सब कानून बनाने से पहले किया होता तो शायद यह स्थिति निर्मित न होती।
शुभ चौपाल देश के अन्नदाताओं से जुडे इस आंदोलनको लेकर प्रारंभ से ही सतर्क करता रहा है। हमें फिर कहना होगा कि सरकार और सरकार से जुडे लोग किसानों की स्थितियों और चिंताओं को समझने में अधिक सफल नहीं रहे। प्रबंधन से कुछ चीजों को कुछ समय के लिए दबाया जा सकता है अथवा लोगों के गुमराह किया जा सकता है, लेकिन बहुत अधिक लोगों से जुडे बहुत अधिक व्यापक मुद्दों में यह अधिक समय तक कारगर नहीं रहता। लोकतांत्रिक व्यवस्था में समस्याओं के संवाद के माध्यम से समाधान तलाशने के रास्ते कभी बंद नहीं होते और इसे किसी भी पक्ष को प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए। बिना किसी आग्रह— दुराग्रह के खुले मन से बातचीत हो तो अभी भी समाधान निकल सकता है। देश हित में सरकार और किसान, दोनो पक्षों को सहमति के बिंदु तलाशते हुए समाधान निकालना चाहिए। इसमे न तो किसी पक्ष की हार होती और न ही किसी की जीत होती। सरकार भी किसानों के हित की बात करती है और किसान अपने हितों को लेकर ही आंदोलनरत हैं। ऐसे में अनावश्यक अहम् के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
—याज्ञवल्क्य
(स.ना. याज्ञवल्क्य )
संपादक
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