क्या हमारा जिला रायसेन मध्यप्रदेश में नहीं है?

जिले के नेताओं— अधिकारियों से जनता पूछ रही सवाल

शुभ चौपाल संवाददाता
subhchoupal@gmail.com
रायसेन। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सभी तरह के माफियाओं के विरूद्ध अभियान छेडने के कठोर आदेश जारी किए हैं। प्रदेश के कुछ जिलों में इन आदेशों पर अमल दिख भी रहा है। सरकारी अमला माफियाओं के किलों को ध्वस्त करता दिखाई दे रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेष में ढेड दशक बिता चुके हैं और सामान्यत: उन्हे ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में नहीं जाना जाता, जिनके आदेश —निर्देश बहुत अधिक प्रभावी होते हैं। अगर बहुत अधिक पीछे न जाएं तो प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में अर्जुन सिंह ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं, जिनका कुछ कहना तो दूर, उनकी भाव— भंगिमा ही सबकुछ सुनिश्चित कर देती थी। अर्जुन सिंह अत्यंत प्रभावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश में याद किए जाते हैं। इसी क्रम में प्रदेश सुंदरलाल पटवा को याद करता है। सुंदरलाल पटवा के कुछ भी कहने के मायने होते थे और उन पर प्रभावी अमल में कोई कोताही हो ही नहीं सकती थी। इसके बाद प्रदेश की लंबे समय तक दिग्विजय सिंह ने बागडोर संभाली। अत्यंत प्रभावी प्रशासकों को देख चुके मध्यप्रदेश ने इस बात को महसूस किया कि मुख्यमंत्री के कहने और होने में बहुत अंतर होता है। इनके बाद शिवराज सिंह चौहान के शासन काल में इसी तरह की प्रवृत्ति बढती गई। यानि कहने और होने में दूरी बढती गई।

रायसेन जिले के नेतृृत्व को लेकर बात करें तो देश के सर्वोच्च पदों तक पहुंचे महान नेताओं का इस जिले से संबंध रहा है। इनमें डॉ शंकरदयाल शर्मा और अटलबिहारी वाजपेयी शामिल हैं। जब बात प्रभावी नेताओं की हो तो जसवंत सिंह और सुंदरलाल पटवा जैसे नेता इसी जिले से रहे हैं, जिनका स्पष्ट कहना तो दूर, संकेत ही प्रशासन के लिए पर्याप्त होता था। इनके बाद प्रशासन पर प्रभावी नेतृत्व में कमी आती गई और नेताओं के कहने को प्रशासन ने गंभीरता से लेना कम कर दिया।

जिले के प्रशासन पर चर्चा में किसी अधिकारी के नाम का उल्लेख उचित नहीं होगा, क्योंकि इनमें से कई अधिकारी अभी भी महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं। बीते साढे तीन दशक से कुछ अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय इस संवाददाता ने जिलाधीश और जिला पुलिस कप्तान सहित कई ऐसे अधिकारियों को देखा हैए जिनकी संवेदनशीलता और प्रभावशीलता मिसाल रही है। जनसामान्य ने इन्हे अपनी समस्या बताई तो निराकरण में दिनों तक बात नहीं जाती थी। जिले में ऐसे अधिकारी भी रहे हैं, जो प्रत्येक आवेदन का गंभीरता से निराकरण करके ही मानते थे। इसके बाद जैसा शासन, वैसा प्रशासन का ढर्रा चल रहा है। आवेदन— निवेदन तकनीकी आडों में दम तोडते रहते हैं और निरीह आवेदक की यह धारणा बन जाती है कि बिना राजनीति और रिश्वत के कुछ नहीं होता।

यह सब बातें इसलिए कि प्रदेश के मुख्यमंत्री के सभी तरह के माफियाओं पर बरसने के बाद जिले के कई स्थानों के लोगों ने यह पूछा है कि रायसेन जिले में तो सभी तरह के माफिया पूरे सम्मान के साथ नेताओं और अधिकारियों से गलबहियां करते दिखते हैं। रेत माफिया नर्मदा की रेत से करोडों की काली कमाई करता है। शराब माफिया गांव— गांव अवैध रूप से शराब के ठेके चला रहा है। सैकडों एकड वन विभाग और अन्य सरकारी विभागों की जमीन पर मााफिया काबिज है। जिले के वनों और वन्य प्राणियों पर वन माफिया का दबदबा है। पंचायतों, जनपद पंचायतों और जिला पंचायत में कमीशन माफिया की चल रही है। मिलावटखोरों की शिकायतों पर कार्यवाही एक टेबिल से दूसरी टेबिल तक भटकती रहती है। ठेकेदार माफिया पंचायतों, नगर पंचायतों और नगर पालिकाओं की विकास योजनाएं बनाकर रूपए छाप रहे हैं। सभी तरह के ठेकेदार विभागों को स्वयं निर्देशित कर रहे हैं। सूदखोरों की यह स्थिति है गली— गली में बिना किसी लाइसेंस के एक के दस दादागिरी से वसूले जा रहे हैं। जिले के लोग बार— बार पूछ रहे हैं कि क्या हमारा जिला रायसेन मध्यप्रदेश में नहीं है, जो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के निर्देश यहां पर प्रभाव दिखाएं। जिले के भाग्यविधाताओं को जनता के इस सवाल का जबाब देना चाहिए।
-शुभ चौपाल- वर्ष-3, अंक-19—

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