रायसेन— गांव— गांव धडल्ले से अवैध रूप से बिक रही शराब, कर रही माहौल खराब
रायसेन। शराब के दुष्प्रभाव के बारे में यदि कोई जनप्रतिनिधि अथवा अधिकारी बात करता है तो रायसेन जिले के निवासियों के चेहरे पर मुस्कराहट अवश्य आ जाती है। इसका कारण यह है कि इस जिले के अधिकांश गांवों में अवैध रूप से धडल्ले से शराब बिक रही है। नेताओं और अधिकारियों को यह सब इसलिए पता है कि उनके अप्रत्यक्ष समर्थन के बिना इतने व्यापक स्तर पर कोई अवैध कारोबार चल ही नहीं सकता।
मध्यप्रदेश सरकार को सर्वाधिक राजस्व देने वाले शराब कारोबार में ठेकेदारों पर शासन— प्रशासन का वरदहस्त स्वाभाविक तौर पर बना रहता है। पहले इसका लाभ तकनीकी किस्म की गडबडियां करके संबधित लोग उठाते रहते थे। पहले ठेकेदार गांव— गांव शराब न बिकवाकर केवल चुनिंदा ढाबों से ही शराब बिकबाते थे। लेकिन बीते कुछ समय से तो शासन— प्रशासन ने शराब ठेकेदारों के सामने घुटने टेक दिए हैं। रायसेन जिले में अवैध शराब की बिक्री के मामले में संबंधितों ने शर्मनाक स्तर तक समर्पण कर रखा है। गांव— गांव में अवैध ठेकों से शराब बिकबाने से लेकर शिकवा— शिकायतें होने पर कितनी शराब कहां से और किससे जब्त करने की खानापूर्ति करनी है, यह भी ठेकेदार ही तय करते हैं। अवैध शराब बिक्री की शिकायतों के मामले में शिकायतकर्ताओं को धमकाने— चमकाने के मामले में भी ठेकेदारों और उनके गुर्गों को पूरा संरक्षण मिला हुआ है।
वैध ठेकों जैसी अवैध बिक्री
‘शुभ चौपाल’ ने रायसेन जिले के करीब पचास गांवों में अवैध रूप से शराब बिक्री की पडताल की। गांव का कोई भी आदमी शराब मिलने का ठिकाना बता देता है। इन गांवों में शराब बेचनेवाले शराब के वैध ठेकों जैसे अंदाज में ही शराब बेचते मिले। इन्होने बताया कि वे करीबी शराब ठेके से प्रतिदिन शराब लाकर बेचते हैं। ठेके पर उनका पूरा हिसाब— किताब रहता है और ठेकेदारों से लेकर पुलिस तक उनके मोबाइल नंबर हैं। कोई समस्या आती है तो ठेके वाले भैया से लेकर पुलिस तक सभी सहयोग करते हैं। कई ठेकेदारों ने आसपास के गांवों तक शराब पहुंचाने की खुद व्यवस्था कर रखी है। ठेकों से चारपहिया वाहनों में शराब लादकर गांव— गांव खपत के अनुसार शराब पहुंचाई जाती है।
माहौल हो रहा खराब
गांवों के लोग अपने ही गांव में चौबीस घंटे शराब मिलने से गांव का माहौल खराब होने की बात बेझिझक करते हैं। लिखित शिकायत के मामले में लोग अपना नाम सामने आने से डरते हैं। ग्रामीण कहते हैं कि पुलिस वाले गांव में शराब बेचने वालों के ही पास आती है और गांव के दूसरे मामलों में भी उनकी ही मार्फत सब कुछ हो जाता है। ऐसे में नामजद शिकायत पानी में रहकर मगर से बैर करने जैसा है। गांवों की महिलाएं इस शराब से सबसे ज्यादा दुखी हैं। वे बताती हैं कि पहले उनके परिवार के लोग दो— चार दिन में पास के कस्बा अथवा शहर से शराब लाते थे। अब गांव में ही मिलने लगी तो दिन में दो— चार बार लेने जाने लगे हैं। परिवार की पूरी कमाई शराब पर होम हो रही है। गांवों के लोग गांव में ही शराब बिकने से खराब हो चुके माहौल के बारे में कई उदाहरण देकर बताते हैं। कई मामले थाने तक भी पहुंचते हैं, लेकिन दर्ज मामलों में यह जिक्र नहीं किया जाता कि आरोपी ने शराब कहां से खरीदी थी?
—’शुभ चौपाल’ के अंक—16 से—