ब्रह्मा की भूल

व्यंग्य

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कई सालों से यह हिंदी का एक बहुपठित व्यंग्य है। पौराणिक चरित्रों के प्रति हमारा पूर्ण सम्मान है। इस रचना के कथानक में उनके नाम को केवल उनके प्रचलित कार्यों के प्रतीकात्मक रूप में मूल भाव को समझते हुए ही ग्रहण करें।
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-याज्ञवल्क्य
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ब्रह्मा जी वृद्धावस्था के बाद भी सृष्टि के निर्माण का दायित्व अत्यंत निपुणता के साथ निभाते जा रहे थे। बडी तन्मयता के साथ उनके हाथ मानव का निर्माण कर रहे थे। बढती उम्र के साथ ही अनुभव में भी वृद्धि हुई थी। इसलिए अब निर्माणकार्य में और अधिक तीव्रता आ गई थी। यहां पृथ्वी पर लोग ब्रह्मा के उत्पादन की विपरीत दिशा में कार्य कर रहे थे, किंतु ब्रह्मा, आखिर ब्रह्मा हैं। उनके बनाए पुतले उनके ही जनसंख्या-वृद्धि कार्यक्रम को कैसे पछाड सकते थे? कुल मिलाकर यह कि पृथ्वी पर चलाए जा रहे जनसंख्या नियंत्रण के सभी कार्यक्रम-योजनाएं असफल सिद्ध हो रहे थे।

ब्रह्मा ने ब्रह्माणी से कह रखा था कि जब वे सृष्टि रचना में जुटे हुए हों वे वहां न आया करें। किंतु उम्र बढने के साथ-साथ दोनो का परस्पर मोह भी बढता जा रहा था। अत्ः कभी-कभी ब्रह्माणी मानव-निर्माण-कक्ष में चक्कर लगा ही देतीं थीं। कभी-कभी तो मन सारी वर्जनाओं को लांघ ही जाता है। ब्रह्मा ऊपरी तौर पर अप्रसन्नता जताते भी थे, किंतु मन-ही-मन प्रसन्न हो उठते थे।

उस दिन ब्रह्मा पूरी तल्लीनता के साथ अपने काम में जुटे हुए थे। हमारी पृथ्वी की तरह वहां भी मौसम कुछ बेईमान था। रह-रहकर ब्रह्माणी स्मृति-पटल पर कौंध जातीं थीं। स्वयं बुलाते तो मान खंडित होता। संस्कार भी इसकी अनुमति नहीं देते थे। हाथ शिथिल थे, मन बेचैन। न चाहने पर भी काम कुछ इस तरह हो रहा था, जैसा हमारे यहां सरकारी प्रतिष्ठानों में होता है।

अचानक उभरने वाली पदचापों ने ब्रह्मा के हृदय की धडकनों की गति बढा दी और वे सोचने लगे कि कहीं वही तो नहीं। अनुमान सही निकला। मन की पुकार ब्रह्माणी तक पहुंच चुकी थी और वे प्रियतम के निकट आने की लालसा को नहीं रोक सकीं थीं।

ब्रह्माणी के आने की खुशी ब्रह्मा के चेहरे पर झलकने लगी। स्वभावतः ब्रह्मा बातें करते हुए भी मानव का निर्माण त्वरित गति से कर रहे थे। काम में व्यवधान न हो, इसके लिए वहां सभी प्रतिबद्ध रहते हैं। और फिर ब्रह्मा के कार्य की महत्ता को देखते हुए उनके लिए अतिरिक्त मुखों की भी व्यवस्था की गई है, जिससे वे कई लोगों से एकसाथ निपट सकें।

मन का असर काम पर भी पडता ही है। ब्रह्मा के साथ, जिसका उन्हे पता नहीं चल रहा था, कुछ ऐसा ही हो रहा था। सुहावना मौसम और प्रियतमा का संग। ऐसे में कोई भूल हो जाए तो स्वाभाविक ही है।

वहां ईश्वर के पास अपने किसी भी विभाग के प्रभारी की शिकायत नहीं पहुंचती, क्योंकि सभी दायित्व की पूर्ति में तत्परता से जुटे रहते हैं। उस दिन ईश्वर बडी चिंता में थे। पाप-पुण्य और सुख-दुख का हिसाब रखने वाले चित्रगुप्त ने शिकायत की थी कि कुछ मनुष्यों को उतना सुख मिल रहा है, जितना कि उनके खातों में पुण्य नहीं है।

रिश्वतखोरी का ईश्वर के प्रशासन में कोई चलन ही नहीं है। अतः इस बात की कोई संभावना नहीं थी कि किसी ने रिश्वत लेकर सुख का अतिरिक्त आवंटन कर दिया हो। विचार-विमर्श के बाद ईश्वर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस बात की जांच होनी चाहिए। जांच का दायित्व नारद को सौंपा गया।

जांच के परिणाम भी शीघ्र सामने आ गए। नारद ने बताया कि ब्रह्मा ने मनुष्य का निर्माण करते समय एक बहुत बडी भूल कर दी है। वे असंख्य मानव-पुतलों में आत्मा डालना भूल गए हैं। और वे ही पुतले, जिनके शरीर में ब्रह्मा आत्मा नहीं डाल पाए, यहां पृथ्वी पर अपने पुण्य की तुलना में कई गुना अधिक सुख भोग रहे हैं।

विशेषज्ञ समिति की टिप्पणी थी, ‘जब तक इन आत्माहीन मनुष्यों की पूरी खपत नहीं हो जाती, तब तक यह गडबडी चलती रहेगी।‘ ब्रह्मा की भूल से निर्मित यह आत्माहीन पुतले संपूर्ण मानवता को कब तक कष्ट पहुंचाते रहेंगे, इस प्रश्न का उत्तर ईश्वरीय विधान में व्याप्त परम गोपनीयता के कारण किसी के पास नहीं है। इसलिए आप यदि किसी गलत आदमी को बहुत अधिक उन्नति करते देखें तो इसे ब्रह्मा की भूल के रूप में ही स्वीकार करें।

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